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__ ११४. (उत्तर) “हे गौतम ! सूर्याभदेव द्वारा रचित विक्रिया की हुई वह सब दिव्य देवऋद्धि आदि उसके शरीर मे चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई-अन्तर्लीन हो गई।" । BHAGAVAN MAHAVIR'S CLARIFICATION
114. "O Gautam ! The celestial wealth and others created by Suryabh Dev from fluid process has all gone into his body. It has absorbed therein."
११५. से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ सरीरं गते, सरीरं अणुप्पविद्वे ?
११५. (प्रश्न) “हे भदन्त ! किस कारण आप ऐसा कहते हैं कि शरीर में चली गई, शरीर में अन्तर्लीन हो गई ?' ___115. Gautam said-“Sir ! On what basis you state that it has gone into and absorbed in his body ?"
११६. गोयमा ! से जहानामए कूडागारसाला सिया-दुहतो लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा, तीसे णं कूडागारसालाए अदूरसामंते एत्थ णं महेगे जणसमूहे चिट्ठति, तए णं से जणसमूहे एगं महं अब्भबद्दलगं वा वासबद्दलगं वा महावायं वा एज्जमाणं वा पासति, पासित्ता तं कूडागारसालं अंतो अणुप्पविसित्ता णं चिट्ठइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति-‘सरीरं अणुष्पवितु।'
११६. “हे गौतम । (कल्पना करें) जैसे कोई एक गहरी, विशाल कूट आकार-पर्वत के शिखर के आकार वाली शाला हो। वह भीतर-बाहर गोबर आदि से लिपी-पुती, बाहर परकोटे-से घिरी हुई, मजबूत किवाडो से युक्त गुप्त द्वार वाली जिसमें वायु का प्रवेश भी कठिन हो, उस कूटाकारशाला के निकट एक विशाल जनसमूह बैठा हो। उस समय वह जनसमूह आकाश में एक बहुत बड़े मेघपटल-सघन बादलों के समूह को अथवा जलवृष्टि करने योग्य बादलो को अथवा प्रचण्ड ऑधी को आता हुआ देखे तो जैसे वह उस कूटाकारशाला के भीतर प्रवेश कर जाता है, उसी प्रकार हे गौतम ! सूर्याभदेव की वह सब दिव्य देवऋद्धि (देव माया) आदि उसके शरीर में प्रविष्ट हो गई-अन्तर्लीन हो गई है, इस कारण मैने कहा कि “वह उसके शरीर में ही प्रविष्ट हो गई।"
116. “O Gautam ! Imagine a house situated on the summit of a mountain. On both sides, it is plastered with cow-dung. It is surrounded with boundary wall. It has strong door. It has secret enterance and it is difficult even for the air to enter into it. A huge 6 gathering of people is sitting near it. Imagine that the gathering
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रायपसेणियसूत्र
(102)
Rar-paseniya Sutra
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