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समणं भगवंतं महावीरं तिक्षुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सूरियाभेदेवे तेणेव उवागच्छंति। __उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धाति वद्धावित्ता एवं आणत्तियं पच्चप्पिणंति।
१११. इसके बाद उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष अपनी दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव प्रदर्शक बत्तीस प्रकार की
दिव्य नाट्यविधियों का प्रदर्शन कर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण* प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दन-नमस्कार करने के पश्चात् सूर्याभदेव के समक्ष आये।
___ वहाँ आकर दोनों हाथ जोडकर सिर पर आवर्त्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके 'जय * विजय हो' शब्द घोषों के साथ सूर्याभदेव को बधाया और बधाकर आज्ञानुसार बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि प्रदर्शित करने की सूचना दी।
111. After performing all the thirty two types of theatrical performances their last depicting celestial wealth, celestial brightness, celestial emotions in excellence, the gods and goddesses went round Bhagavan Mahavir three times, paying their respects. They then bowed to him and thereafter came to Suryabh Dev.
They then folded their hands, placed them at their forehead and praised Suryabh Dev by saying that he may always be successful. They then informed him that they had given presentation of thirty two types of dramatic skills. सूर्याभदेव का वापस जाना
११२. तए णं से सूरियाभे देवे तं दिव्वं देविडि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभावं पडिसाहरइ, पडिसाहरेत्ता खणेणं जाते एगे एगभूए।
तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवंतं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता नियगपरिवालसद्धिं संपरिवुडे तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरूहति दुरूहित्ता जामेव दिसिं पान्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
११२. तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने अपनी सब दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति और दिव्य * देवानुभाव-प्रभाव को समेट लिया (अपने शरीर में प्रविष्ट कर लिया और शरीर में प्रविष्ट 0 करके) क्षणभर में अनेक होने से पूर्व जैसा अकेला था वैसा ही एकाकी बन गया। ० रायपसेणियसूत्र
Rar-paseniya Sutra
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