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________________ * * 9 100. Thereafter they performed the dance depicting egg of a fish, egg of crocodile, jaar, maar (cupid). १०१. 'क' त्ति ककारप वि. च, 'ख' त्ति खकारप च, 'ग' ति गकारप च, 'घ' त्ति धकारप च, 'ङ' त्ति ङकारप च, ककार-खकार-गकार-घकार-कारप. च णामं उवदंसेंति, एवं चकारवग्गो पि टकारवग्गो वि तकारवग्गो वि पकारवग्गो वि। १०१. तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियो ने क्रमशः 'क' अक्षर की आकृति-रचना करके ककार प्रविभक्ति, 'ख' अक्षर की आकृति-रचना करके खकार प्रविभक्ति, 'ग' अक्षर की आकृति-रचना द्वारा गकार प्रविभक्ति, 'घ' अक्षर के आकार की रचना घकार प्रविभक्ति और 'ड' अक्षर के आकार की रचना द्वारा उकार प्रविभक्ति; इस प्रकार ककार, खकार, गकार, घकार, ङकार प्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधियो का प्रदर्शन किया। * इसी तरह से चकार, छकार, जकार, झकार, ञकार की रचना करके चकार वर्ग प्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। * चकार वर्ग के पश्चात् क्रमशः ट, ठ, ड, ढ, ण के आकार की सुरचना द्वारा टकार वर्ग विभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का प्रदर्शन किया। अनन्तर अनुक्रम से तकार, थकार, दकार, धकार, नकार की रचना करके तकार वर्ग विभक्ति नामक नाट्यविधि को दिखलाया। फिर प, फ, ब, भ, म के आकार की रचना करके पकार वर्ग प्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया। 101. Thereafter they danced in the shape of letters of Devanagari script namely k, kha, ga, gha, anga; then of letters cha, chha, ja, jha, *jna; then of letters ta, tha, da, dha, ana; then of letters ta, tha, da, dha, na; then of letters pa, pha, ba, bha, ma. विवेचन-यहाँ लिपि सम्बन्धी अभिनयो के उल्लेख मे ककार से पकार पर्यन्त पाँच वर्गो के २५ अक्षरो के अभिनयो का ही सकेत किया है, उसमे स्वरो तथा य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ अक्षरो के अभिनयो का उल्लेख नहीं है। इसका कोई ऐतिहासिक कारण है या अन्य, यह विचारणीय है। अथवा सम्भव है कि देवो की लिपि मे ककार से लेकर पकार तक के अक्षर होते हो जिससे उन्ही का अभिनय प्रदर्शित किया है। वृत्तिकार का कथन है-इन लिपि सम्बन्धी अभिनयो मे 'क' वगैरह की जो मूल आकृतियाँ ब्राह्मी लिपि में बताई हैं, उन आकृतियो के सदृश अभिनय यहाँ समझना चाहिए। जैसे कि ब्राह्मी लिपि में 'क' की '+' ऐसी आकृति है, अतएव इस आकृति के अनुरूप स्थित होकर अभिनय करके बताना 'क' की रायपसेणियसूत्र (92) Ral-paseniya Sutra Xx* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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