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एगावलि-कण्ठ-रइय-सोभंतवच्छ-परिहत्थ-भूसणाणं अट्ठसयं णट्टसज्जाणं ॐ देवकुमाराणं णिग्गच्छति।
७५. तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव ने श्रमण भगवान महावीर की ओर देखकर प्रणाम किया 2 और प्रणाम करके कहा-“हे भगवन् ! मुझे आज्ञा दीजिये।'' फिर तीर्थकर की ओर मुख * करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर सुखपूर्वक बैठ गया।
इसके पश्चात् नाट्यविधि प्रारम्भ करने के लिए उस सूर्याभदेव ने सर्वप्रथम निपुण शिल्पियों द्वारा बनाये गये अनेक प्रकार की विमल मणियों, स्वर्ण और रत्नों से निर्मित भाग्यशालियों के योग्य, देदीप्यमान, कडे-बाजूबंद आदि श्रेष्ठ आभूषणों से विभूषित उज्ज्वल
पुष्ट दीर्घ दाहिनी भुजा को फैलाया। * उस दाहिनी भुजा से एक सौ आठ देवकुमार निकले। वे समान शरीर-आकार, समान * रग-रूप, समान वय, समान लावण्य, युवोचित गुणो वाले, एक जैसे आभरणों, वस्त्रों और * नाट्य उपकरणों से सुसज्जित थे। कन्धों के दोनों ओर लटकते पल्लों वाले उत्तरीय वस्त्र
(दुपट्टे) ओढे हुए थे और शरीर पर रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए झालरयुक्त चित्र-विचित्र देदीप्यमान, लटकते अधोवस्त्रों (चोगा) को धारण किये हुए थे, जो हवा का झोंका लगने
पर फेन जैसा प्रतीत हो रहा था। कण्ठ एव वक्षस्थल एकावली आदि आभूषणों से " शोभायमान हो रहे थे। वे नृत्य करने के लिए तत्पर हुए। DANCE CREATION
75. Thereafter Suryabh Dev turning towards Bhagavan Mahavir, saluted him and said—“O Reverend Sir ! Kindly allow me.” He then sat on the throne facing Bhagavan Mahavir.
Thereafter, in order to start the dancing activity, Suryabh Dev first of all spread his shining, well-built right arm. It was bearing shining thick bangles (Kare) and other ornaments prepared by expert jewellers. They were studded with gems, gold and jewels and
were worthy of being worn by the fortunate ones. * One hundred eight young gods emanated from that right hand. * They were identical in physical outlook size, colour, beauty, age and
youth pertaining qualities. They were wearing ornaments, clothes and theatrical articles of same type. They were having pieces of cloth hanging down fun both the shoulders. They were wearing clothes of different colours. Their gowns were having marginal lace
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रायपसेणियसूत्र
(76)
Rar-paseniya Sutra
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