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(४) राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण का प्रसग। (५) सूर्याभदेव के आगामी भव-दृढप्रतिज्ञकुमार का वर्णन।
दृढप्रतिज्ञकुमार का वर्णन यह बताता है कि जिसने पूर्वभव मे धर्म की आराधना की हो, उस व्यक्ति का आगामी भव (उत्तर भव) भी बडा ही धर्ममय, उच्च गुणो से युक्त, प्रभावशाली और सुख-सौभाग्य से सम्पन्न होता है। उसके व्यवहार में धर्म का प्रत्यक्ष प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। प्रस्तुत सम्पादन ___ 'रायपसेणियसूत्र' कथानुयोग का शास्त्र है। इससे लगता था इसका अनुवाद-विवेचन कार्य अनुयोगद्वार की अपेक्षा सरल ही होगा, परन्तु काम प्रारम्भ करने पर पता चला कि यह अनुयोगद्वार से भी क्लिष्ट आगम है। इसकी भाषा और वर्णन-शैली उच्च साहित्यिक तो है ही, साथ ही पारिभाषिक
शब्दो से भरी है। देव विमानो के वर्णन मे वहाँ की स्थिति का वर्णन उसी स्तर की भाषा मे किया गया * है, जिसे शब्दार्थ व शब्दो की व्याख्या के बिना समझ पाना सरल नही है। इसलिए अनुवाद और विवेचन र मे इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि प्राचीनकाल मे प्रचलित या स्वर्ग विमान के वर्णन में प्रयुक्त - उन शब्दो का आज की भाषा मे अर्थ और स्पष्टीकरण भी साथ ही साथ करते जाना चाहिए। सदा आगम * स्वाध्याय करने वालो को जो शब्द परिचित लगते है, वे शब्द कभी-कभार आगम पढने वालो को समझ
पाने में कठिनाई हो जाती है। हिन्दी अनुवाद मे तो फिर भी वे शब्द चल जाते है, किन्तु अग्रेजी अनुवाद 9) मे उन शब्दो की व्याख्या किये बिना पाठक कुछ भी नही समझ पायेगा, क्योकि उस भाषा और सस्कृति
मे वे शब्द प्रयुक्त ही नही होते है, तो उनका अर्थ कैसे समझा जायेगा। इसलिए अनुवाद-विवेचन और " अग्रेजी अनुवाद मे इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि उन अप्रचलित शब्दो का आज के सन्दर्भ
मे अर्थ दिया जाय ताकि पाठक को समझने में कठिनाई न हो। इसलिए पद-पद पर टीकाकार की व्याख्या
और शब्दकोष का सहारा लेते हुए इसका अनुवाद किया है, जो अब तक के प्रचलित अनुवादो से सर्वथा भिन्न और विशिष्ट लगेगा।
पुरानी प्रतियो मे ३०-४० लाइनो के दो-दो पृष्ठ के ऐसे सयुक्त पाठ है, जिनका उच्चारण बहुत कठिन होता है, कहाँ विश्राम लेना, कहाँ शब्द तोडना, कहाँ किस पाठ का क्या शब्दार्थ करना, यह वाचक, पाठक और श्रोता के ध्यान में भी नही रहता। इसलिए हमने लम्बे पाठों के छोटे-छोटे पद व वाक्य बनाकर बीच-बीच मे उनका अर्थ कर दिया है। कई जगह तो एक ही सूत्र के (क), (ख), (ग) आदि लगाकर पाँच-छह उप-विभाग कर दिये है, जिस कारण पाठ का उच्चारण करना तथा अर्थ समझना सरल हो गया है।
जहाँ तक हो सका है, आगम के विषय को पढ़ने-समझने मे सरलता बढाने का पूरा ध्यान रखा है। आशा है यह प्रयत्न पसन्द किया जायेगा।
आधार ग्रन्थ ___'रायपसेणियसूत्र' कथानुयोग का शास्त्र होने के कारण इस पर आचार्यो ने नियुक्ति, भाष्य, वृत्ति आदि भी नही लिखी। आचार्य मलयगिरि ने इस पर सुन्दर, गम्भीर टीका लिखी है और यही टीका इस शास्त्र
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