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3 पुराना और उपयोग में लाया घट भी दो प्रकार का होता है। एक वह जो सुगन्धित व शुद्ध
जल भरने के काम में लिया गया हो। ऐसे स्वभाव वाले श्रोता जिन्होंने ज्ञान प्राप्त कर गुणों को अपनाया हो दुर्गुणों को नहीं, वे भी सुपात्र होते हैं।
उपयोग में लाया दूसरे प्रकार का घट वह होता है जिसमें मदिरा आदि दुर्गन्धित पदार्थ भरा गया है। ऐसे घट की दुर्गन्ध यदि कुछ समय बाद स्वतः दूर हो जाती है तो वह उपयोग में लाया - 卐 जा सकता है किन्तु यदि दुर्गन्ध ऐसी है कि दूर नहीं होती तो वह उपयोग में नहीं लाया जा
सकता। इसी प्रकार जिस श्रोता ने दुर्गुण तो ग्रहण किये हों किन्तु वह चेष्टा करने पर उन दुर्गुणों ॐ से मुक्त हो सके तो वह ज्ञानदान के उपयुक्त है। जो श्रोता दुर्गुणों में इतना लिप्त हो चुका हो कि म उनसे मुक्त होने की न तो सम्भावना हो न ही चेष्टा करता हो, वह ज्ञानदान हेतु सर्वथा * अनुपयुक्त और कुपात्र होता है। 5 (३) चालणी-चालणी में कितना ही तरल पदार्थ डालो वह कभी भरती नहीं। जितने बड़े छेदक के हों उतनी ही शीघ्र खाली हो जाती है। जब तक पानी में रहती है, भरी हुई दिखाई देती है, परन्तु फ़ ऊपर उठाने पर खाली रहती है। चालणी का स्वभाव है, वह सार को निकाल देती है, असार को
अपने पास रखती है। ऐसे स्वभाव वाला श्रोता जो भी सुनता है वह सब भूल जाता है तथा ॐ सुनकर गुणों को छोड़ अवगुणों पर ध्यान देता है, वह अपात्र होता है।
(४) परिपूर्णक-छन्ना अथवा फिल्टर का गुण है कि वह तरल पदार्थ में रही गन्दगी को रोक फ़ लेता है। ऐसे स्वभाव वाला व्यक्ति उपदेश में से भी गुण नहीं अवगुण ग्रहण करता है। वह + श्रुतज्ञान के लिए अनुपयुक्त है। भाष्य में परिपूर्णक का अर्थ ‘बया का घोंसला' किया है। जिससे घी छानने पर घी नीचे चला जाता है कचरा ऊपर रह जाता है।
(५) हंस-स्वभाव व सौन्दर्य दोनों दृष्टियों से हंस श्रेष्ठतम पक्षी माना जाता है। हेय और ॐ श्रेय के बीच चयन के लिए उसके नीर-क्षीर विवेक की उपमा दी जाती है। हिन्दी में एक प्रसिद्ध
कहावत है-या हंसा मोती चुगे या लंघन कर जाय। हंस जैसी विवेक बुद्धि वाला श्रोता सुनकर )
गुण मात्र ग्रहण करता है, अवगुण की बात त्याग देता है। ऐसा श्रोता सुयोग्य पात्र होता है और ॐ श्रुत-श्रवण का अधिकारी है।
(६) महिष-भैंसा स्वभावतः स्वच्छता का विरोधी होता है। सामान्यतया वह कीचड़ में ही बैठता है और यदि स्वच्छ जल में प्रवेश करता है तो उसे भी कीचड़ जैसा बना देता है। ऐसे स्वभाव वाला श्रोता प्रथम तो ज्ञान की बात सुनने जाता ही नहीं और यदि गया तो वातावरण
को ही दूषित कर देगा, अन्यों के लिए विघ्न उत्पन्न करेगा, असंबद्ध बातें और प्रगल्भ चेष्टाएँ +करेगा। ऐसा श्रोता श्रुतज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होता। ज (७) मेष-मेंढे और उसी प्रजाति के पशु जब पानी पीते हैं तो जलाशय के किनारे अगले +घुटने टेककर जल की सतह से पानी पीते हैं। इससे उसे स्वच्छ जल मिलता है और जलराशि
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श्री नन्दीसूत्र
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