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The procedure of Anuyog is—first of all recite the text and is w the meaning; after this, mix it with commentaries (niryukti); 45 yi and thirdly validate it with the help of naya and nikshep.
This concludes the description of Angapravisht shrut. This \ concludes the description of shrut-jnana. This concludes the 45
description of paroksh-jnana. This concludes Nandi Sutra. ___विवेचन-उपसंहार करते हुए श्रुत के चौदह भेद बताने के पश्चात् श्रुतज्ञान को प्राप्त करने के के लिए आवश्यक बुद्धि के आठ गुणों का वर्णन किया गया है। इसका इंगित यह है कि श्रुतज्ञान
देने का अधिकारी तो गुरु है किन्तु पाने का अधिकारी कौन है यह देखे बिना श्रुतज्ञान देना 卐 अहितकर होता है। जिससे श्रुत की अवहेलना भी हो सकती है।
बुद्धि चेतना की क्रिया है, वह गुण तथा अवगुण दोनों को ग्रहण करती है। जो बुद्धि गुण 卐 ग्रहण करती है वही श्रुतज्ञान के योग्य और सक्षम है। पूर्वधर तथा धीर आचार्यों का कथन है
कि वुद्धि के आठ गुणों सहित श्रुतज्ञान करने वाले गुरु के पास अध्ययन किया जाये तभी आगम शास्त्रों का ज्ञान हो सकता है।
बुद्धि के ये आठ गुण इस प्रकार हैं
(१) सुस्सूसई-शुश्रूषा करना-सुनने की इच्छा सहित गुरु की उपासना करना। ज्ञान प्राप्त करने के लिए अथवा पाठ आरम्भ होने से पूर्व गुरु की भक्तिभाव से वन्दना-सेवा आदि करना है है और फिर सुनने की जिज्ञासा व्यक्त करना। जिज्ञासा के अभाव में ज्ञान प्राप्त होना असंभव है।
(२) पडिपुच्छई-प्रतिपृच्छना करना-पाठ आरम्भ होने पर अथवा सूत्र या अर्थ सुनने पर यदि ॥ ॐ शंका उत्पन्न हो तो विनयपूर्वक गुरु के समक्ष प्रश्न करना। शंका के समाधान के विना अर्थ स्पष्ट नहीं होता और ज्ञान पुष्ट नहीं होता। प्रतिपृच्छा में जिज्ञासा की प्रधानता रहती है।
(३) सुणेई-गुरुजन प्रश्न का उत्तर देते हैं उसे एकाग्रपन से सुनना। यदि किसी शंका का समाधान न हो तो गुरुजनों से पुनः पूछकर उनका उत्तर ध्यानपूर्वक सुनना।
(४) गिण्हई-गुरुजनों द्वारा दिया गया समाधान तथा गुरु वाचना से प्राप्त पाठ को हृदय में ॐ धारण करना।
(५) ईहा-हृदयंगम किये हुए पाठ या उत्तर पर चिन्तन-मनन करना जिससे ज्ञान मन का ॐ विषय बन पाये।
(६) अपोहा-ज्ञान पर चिन्तन-मनन करके यह निश्चय करें कि गुरुजनों से प्राप्त ज्ञान यथार्थ है, सम्यक् है। म (७) धारणा-फिर स्थिर विश्वास होने पर उस ज्ञान का सार हृदय एवं बुद्धि में धारण करें।
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श्रुतज्ञान
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