________________
如听听听听听听听FFFFFFFFFFFs%5听听听听听听听听$ 55听听听听听听听听听听听听听
期先點點點點點點點點點期发班线路%验与劣等断断断与空
क्षेत्र से श्रुतज्ञानी-उपयोग द्वारा समस्त क्षेत्र को जानता और देखता है। काल से * श्रुतज्ञानी-उपयोग द्वारा सर्वकाल को जानता और देखता है। भाव से श्रुतज्ञानी-उपयोग 5 ॐ द्वारा सब भावों को जानता और देखता है। 15 114. It is not that the panchastikaya (five fundamental 5 things) did not, do not, and will not exist. They did, do, and will si exist in the past, present, and future. They are firm, defined, Heternal, unending, not depleted, fixed, and ever existent.
In the same way, it is not that the Dvadashang Ganipitak did 4fi not, do not, and will not exist. They did, do, and will exist in the ॐ past, present, and future. They are fixed, defined, eternal, unending, not depleted, firm and ever existent.
In brief, this Dvadashang has been propagated four waysHe with reference to substance, area, time and modes, as is said卐 With reference to substance a shrutjnani, when intends, seesy 2 and knows all substances. With reference to area a shrutjnani, 5 when intends, sees and knows all areas. With reference to time + a shrutjnani, when intends, sees and knows all time. With 卐
reference to mode a shrutjnani, when intends, sees and knows all modes.
विवेचन-द्वादशांग की शाश्वतता को विभिन्न दृष्टिकोणों से स्थापित करने के लिए ध्रुवादि विशेषणों का उपयोग किया गया है। इनका विवरण उदाहरण, दृष्टान्त या उपमा आदि के द्वारा इस प्रकार है
ध्रुव-मेरुपर्वत जैसे सर्वकालीन अचल व ध्रुव है उसी प्रकार द्वादशांग ध्रुव है। नियत-जीवादि नव तत्त्व का प्रतिपादक होने से वह नियत है।
शाश्वत-सृष्टि का आधारभूत होने से पंचास्तिकाय जैसे सदा विद्यमान है तथा रहेंगे वैसे ही यह शाश्वत है। 卐 अक्षय-जैसे गंगा आदि महानदियों का प्रवाह निरन्तर प्रवहमान होने पर भी अक्षय है वैसे
ही वाचनारूपी श्रुत-प्रवाह निरन्तर गतिमान होने पर भी ये अक्षय है। + अव्यय-जैसे (मानुषोत्तर पर्वत से बाहर में) समुद्र की अथाह जलराशि में न्यूनाधिकता नहीं
होती उसी प्रकार मोक्ष मार्ग की प्रेरक क्षमता की अथाह राशि होने के कारण ये अव्यय हैं। श्री नन्दीसूत्र
( ४६२ )
Shri Nandisutra $55岁步步步等步555555555555岁等等方555555岁5步先生
全听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org