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गणधरावलि
THE LIST OF GANADHARS २२-२३ : पढमित्थ इंदभूई, बीए पुण होइ अग्गिभूइ ति।
तइए य वाउभूई, तओ वियत्ते सुहम्मे य॥ मंडिय-मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य।
मेयज्जे य पहासे, गणहरा हुन्ति वीरस्स। अर्थ-अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के गण की व्यवस्था करने वाले क्रमशः ग्यारह गणधर हुए-१. इन्द्रभूति, २. अग्निभूति, ३. वायुभूति (तीनों सहोदर), ४. व्यक्त, ५. सुधर्मा, ६. मण्डितपुत्र, ७. मौर्य पुत्र, ८. अकम्पित, ९. अचल भ्राता, १०. मेतार्य, और ११. प्रभास।
There were eleven Ganadhars (principal disciples) who managed the organization established by Bhagavan Mahavir31. Indrabhuti, 2. Agnibhuti, 3. Vayubhuti (these three were
brothers), 4. Vyakt, 5. Sudharma, 6. Manditputra, 7.5 Mauryaputra, 8. Akampit, 9. Achal Bhrata, 10. Metarya, and 11. Prabhas.
विवेचन-धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकर होते हैं। तीर्थ स्थापना के 5 समय सबसे पहले गणधरों को मुनि दीक्षा प्रदान की जाती है। ये अपने युग के विशिष्ट
प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व होते हैं। दीक्षा लेते ही गणधर लब्धि के प्रभाव से इनका श्रुतज्ञान विस्तृत है
हो जाता है और वे तीर्थंकरदेव के श्रीमुख से त्रिपदी का प्रथम प्रवचन सुनकर उसे अपनी प्रखर ॐ प्रज्ञा द्वारा विस्तार देकर श्रुत-सम्पदा प्रवाहित करते हैं। तीर्थंकरदेव के वचनों को आगमरूप
माला में गूंथने का कार्य गणधर करते हैं। भगवान महावीर के शासनकाल में ग्यारह गणधर तथा :
नौ गण हुए। इनमें सबसे ज्येष्ठ प्रथम गणधर थे इन्द्रभूति गौतम। पंचम गणधर थे सुधर्मा जो 9 भगवान के निर्वाण पश्चात् प्रथम पट्ट पर विराजमान हुए। वर्तमान में सभी श्रमण गणधर सुधर्मा की शिष्य परम्परा के हैं।
Elaboration-The Teerth (ford of religion) is established by they Tirthankars who are absolutely detached and omniscient. The first step taken at the time of establishing the Teerth is to formally initiate i
the Gandhars. These are exceptionally talented individuals of their y period. As soon as they are initiated they acquire the Ganadhar 4 labdhi (a special power) which instantaneously expands their
- 5 ॥ श्री नन्दीसूत्र
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