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中历历明明斯克与步步步牙牙牙助听听听听听對身穿与步步皆与分分 5 अजीवा, अणंता भवसिद्धिया, अणंता अभवसिद्धिया, अणंता सिद्धा, अणंता असिद्धा पण्णत्ता।
भावमभावा हेऊमहेऊ कारणमकारणे चेव।
जीवाजीवा भविअ-अभविआ सिद्धा असिद्धा य॥ __ अर्थ-इस द्वादशांग गणिपिटक में अनन्त भाव, अनन्त अभाव, अनन्त हेतु, अनन्त अहेतु, अनन्त कारण, अनन्त अकारण, अनन्त जीव, अनन्त अजीव, अनन्त भवसिद्धिक, अनन्त अभवसिद्धिक, अनन्त सिद्ध और अनन्त असिद्ध का विषय प्रतिपादन किया गया है।
संग्रहणी गाथा में भी यही सूची दी गई है।
111. The subjects dealt in this Dvadashang Ganipitak are___infinite bhava (modes), infinite abhava (non-modes or absence : 4 of modes), infinite hetu (causes), infinite ahetu (non-causes), 55 + infinite karan (basis), infinite akaran (non-basis or absence of ___basis), infinite beings, infinite (non-beings), infinite :
bhavasiddhik (destined to liberate), infinite abhavasiddhik (not 3 destined to liberate), infinite Siddhas (liberated ones), and 5 infinite asiddha (not liberated).
The sangrahini verse also contains the same list.
विवेचन-यह द्वादशांग में चर्चित विषयों की संक्षिप्त रूपरेखा है। प्रत्येक पदार्थ अपने स्वरूप 卐 में सद्प होता है यह भाव है, इसका प्रतिपक्षी असद्प है अर्थात् अन्य रूप की अपेक्षा से वह 2 असदुप है-यह उस अन्य रूप का अभाव है। जैसे जीव में जीवत्व का भाव है और अजीवत्वक
का अभाव। हेतु का अर्थ वे साधन हैं जो इच्छित अर्थ की जिज्ञासा में कारण स्वरूप हों। इसका 9 प्रतिपक्ष अथवा अन्य रूपी अहेतु हैं। कारण वे हैं, जिनके आधार पर स्वगुणों का निर्माण होता है ।
जैसे घट के कारण हैं मिट्टी (उपादानकारण), चाक, डण्डा, वस्त्र, कुम्हार आदि (निमित्तकारण)। # इसका प्रतिपक्ष अथवा पर-गुणों के आधार अकारण हैं। जीव-अजीव, भव्य-अभव्य, सिद्ध-असिद्ध 卐 ये सभी पूर्व वर्णित हैं।
Elaboration-This the brief list of the subjects discussed in the 4 twelve Angas. Every substance in its natural form is existent, this is si
bhava. Contrary to this is the absence or non-existence of a form 41 other than its natural form or an un-natural form, this is abhava. For 41 example a being has presence of the basic attribute of life and absence of the basic attribute of non-being. Hetu is the cause that
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श्रुतज्ञान
( ४५७ )
Shrut-Jnana
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