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5. Jnanapravad Purva has twelve vastu. $ 6. Satyapravad Purva has two vastu. 5 7. Atmapravad Purva has sixteen vastu.
8. Karmapravad Purva has thirty vastu.
9. Pratykhyanpravad Purva has twenty vastu. ___10. Vidyanupravad Purva has fifteen vastu. 9 11. Abandhya Purva has twelve vastu.
12. Pranayu Purva has thirteen vastu.
13. Kriyavishal Purva has thirty vastu. 41 14. Lokabındusar Purva has twenty five vastu.
(In brief) The first has 10, second 14, third 8, fourth 18, fifth 4i 12, sixth 2, seventh 16, eighth 30, ninth 20, tenth 15, eleventh
12, twelfth 13, thirteenth 30, and fourteenth 25 vastu. ___The first four Purvas have 4, 12, 8, and 10 chulika and the + S rest do not have any chulika.
This concludes the description of Purvagat.
विवेचन-जैन परम्परा में यह मान्यता है कि जव तीर्थंकर अपनी प्रथम देशना में अपने समय 卐 के शीर्षस्थ ज्ञानी व मेधावी गणधरों को सम्बोधित करते हैं तब उनके द्वारा मातृकापद के 5
उच्चारण मात्र से गणधरों की अन्तःप्रज्ञा में समस्त श्रुतज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इसके पश्चात् वे
इस ज्ञान के आधार पर अपनी शिष्य परम्परा के लिए अंग शास्त्रों की रचना करते हैं। यह ज्ञान म उन्हें द्वादशांग की रचना से पूर्व ही प्राप्त हो चुका होता है। अतः इसे पूर्वगत कहते हैं। गणधरों ,
के लिए यह पूर्व हैं, किन्तु उनकी शिष्य परम्परा के लिए इस गहन ज्ञान को समस्त अंग शास्त्रों + का तलस्पर्शी ज्ञान हो जाने के बाद दिये जाने का विधान है। एक मान्यता यह भी है कि पूर्वगतम ॐ ज्ञान शब्दातीत है और केवल अनुभवगम्य होने के कारण इसे प्राप्त करने का मार्ग केवल उत्कृष्ट साधना है।
पूर्वगत के उपरोक्त नामोल्लेख के आधार पर चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने उनमें जिन विषयों * का ज्ञान होना संभावित है उनकी अनुमानित सूची दी है
(१) उत्पादपूर्व-समस्त द्रव्यों तथा पर्यायों की उत्पत्ति। (२) अग्रायणीपूर्व-सभी द्रव्यों, पर्यायों और जीवों के परिमाण।
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