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________________ ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) नियुक्ति-निश्चयपूर्वक अर्थात् स्पष्ट रूप में अर्थ को प्रतिपादन करने वाली युक्ति को नियुक्ति कहते हैं। आचारांग में संख्यात नियुक्तियाँ हैं। - प्रतिपत्ति-जिसमें द्रव्यादि पदार्थों विषयक मान्यता अथवा प्रतिमा आदि अभिग्रह विशेष का उल्लेख हो वह प्रतिपत्ति है। आचारांग में संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं। उद्देशन काल-गुरु की आज्ञा तथा व्यवस्थानुसार अंगसूत्र आदि शास्त्र विशेष का पठन-पाठन * करना। आचारांग में इसका विधान है। समुद्देशन काल-गुरु की आज्ञा तथा व्यवस्थानुसार किसी शास्त्र में से पाठ विशेष अथवा ॐ विषय विशेष अथवा अंश विशेष का पठन-पाठन करना। आचारांग में इसका विधान है। पद-पद चार प्रकार के होते हैं-अर्थपद, विभक्त्यपद, गाथापद, और समासान्तपद। आचारांगसूत्र में अठारह हजार अर्थपद हैं। ___ अक्षर-आचारागंसूत्र में संख्यात अक्षर हैं। गम-अर्थ निकालने के मार्ग जो अभिधान व अभिधेय के वश से होते हैं गम कहलाते हैं (शब्द से अर्थबोध पाना गम है)। आचारांग में अनन्त गम हैं। त्रस-आचारांग में परिमित त्रसों का वर्णन है। स्थावर-आचारांग में अनन्त स्थावरों का वर्णन है। पर्याय-आचारांग में स्व-पर भेद से अनन्त पर्यायों का वर्णन है। शाश्वत, प्रयोगज तथा विश्रसा-धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नित्य शाश्वत हैं। घट-पट आदि प्रयोगज कृत्रिम है, तथा संध्याकालीन लालिमा आदि विश्रसा स्वाभाविक है। आघविज्जति आदि का अर्थ इस प्रकार हैआघविजंति-सामान्य एवं विशेष रूप में कथन करना। पण्णविज्जति-नाम आदि का भेद प्रदर्शित करके कथन करना। परूविज्जंति-किसी विषय का विस्तार करना। दंसिज्जंति-उपमा-उपमेय द्वारा भाव दर्शाना । निदंसिज्जंति-हेतु-दृष्टान्त आदि द्वारा वस्तु स्वरूप बताना। उवदंसिज्जंति-उपदेश प्रधान सुगम शैली से कथन करना ताकि सभी को बुद्धिग्राह्य बन सके। आचारांग में ये छहों प्रकार की शैली द्वारा तत्त्व का स्वरूप वर्णन किया गया है। आचारांग की अधिकांश रचना गद्यात्मक है। केवल कुछ स्थानों पर पद्यों का समावेश है। + इसके सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है किन्तु वह अनुपलब्ध है। नवाँ अध्ययन, जिसका 8听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) ) म म ममम 卐 श्री नन्दीसूत्र (३८८ ) Shri Nandisutra 47 0555555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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