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All beings always have the capacity to know this tiny unit of paryaya-jnana This can also be termed as the smallest part of shrutJnana. If that also is obscured by infinite karma particles, a being turns into a non-being or matter. But this does not happen. The densest clouds cannot completely obscure the radiance of the sun or the moon, in the same way in spite of its every section being veiled by infinite karma particles, soul is never completely devoid of chetna (the unique pulsating spiritual attribute of soul that sets it apart from matter). A being in the state of minute nigod (dormant being) also has some shrut, no matter how small.
गमिक, अगमिक, अंगप्रविष्ट तथा अंगबाह्य वर्णन GAMIK, AGAMIK, ANGAPRAVISHT AND ANGABAHYA ७९ : से किं तं गमिअं?
गमिअं दिट्टिवाओ।
से किं तं अगमिअं?
अगमिअं-कालिअसुआं । से त्तं गमिअं से त्तं अगमिअं ।
अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा - अंगपविट्टं, अंगबाहिरं च । से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा - आवस्सयं च आवस्सयवइरित्तं च ।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सय छव्विहं पण्णत्तं तं जहा - ( १ ) सामाइयं, (२) चउवीसत्थवो, (३) वंदणयं (४) पडिक्कमणं, (५) काउस्सग्गो, (६) पच्चक्खाणं ।
से त्तं आवस्सयं ।
अर्थ - प्र
- प्रश्न - गमिक - श्रुत क्या है ?
उत्तर- दृष्टिवाद गमिक श्रुत है |
प्रश्न- अगमिक - श्रुत क्या है ?
उत्तर- कालिकश्रुत अगमिक श्रुत है। यह गमिक और अगमिक श्रुत का स्वरूप है। अथवा संक्षेप में ये दो प्रकार के बताए हैं - ( १ ) अंगप्रविष्ट, और (२) अंगबाह्य । प्रश्न- यह अंगबाह्य श्रुत कितने प्रकार के हैं ?
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श्रुतज्ञान
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Shrut-Jnan
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