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म (४) भावत'-तीर्थंकर सम्यक्श्रुत में जो भाव सामान्य रूप से, विभिन्न भेदी व दृष्टान्तों सहित
प्ररूपित करते हैं उनकी अपेक्षा से श्रुत सादि-सान्त है क्योंकि वह सम्यक्त्व-प्राप्ति पर आरम्भ ॥
होता है और मिथ्यात्व अथवा कैवल्य-प्राप्ति पर समाप्त हो जाता है। क्षायोपशमिक भावों की है अपेक्षा में वह अनादि-अनन्त है, क्योंकि जिन जीवों में क्षयोपशम की प्रक्रिया आरम्भ हो गई उन्हें
सम्यक्श्रुत सदा उपलब्ध है। अतः अनादि-अनन्त है और जिन जीवो मे क्षयोपशम की प्रक्रिया ॐ आरम्भ नहीं हुई उन्हें मिथ्याश्रुत सदा उपलब्ध है।
अन्य शब्दों में भव्य प्राणी का श्रुत सादि-सान्त है तथा अभव्य का श्रुत अनादि-अनन्त। इसे चार भागों से समझा जा सकता है
(१) सादि-सान्त-सम्यक्त्व होने पर अंग सूत्रों का अध्ययन किया जाता है और मिथ्यात्व के 卐 उदय पर अथवा केवलज्ञान होने पर वह प्राप्त श्रुत लुप्त हो जाता है। यह भव्य जीवों की अपेक्षा
(२) सादि-अनन्त-यह अस्तित्वहीन अथवा शून्य है, क्योंकि सम्यक्श्रुत अथवा मिथ्याश्रुत दोनों ही आदि सहित तो हैं किन्तु अनन्त नहीं हैं। सम्यक्त्व के उदय पर मिथ्याश्रुत का लोप होता म है और मिथ्यात्व के उदय पर सम्यक्थुत का। कैवल्य होने पर दोनों का लोप हो जाता है।
(३) अनादि-सान्त-भव्य जीवों का मिथ्याश्रुत अनादि काल से चला आ रहा है और + सम्यक्त्व-प्राप्ति पर उसका लोप हो जाता है। यह भी भव्य जीवों के सम्बन्ध में है।
(४) अनादि-अनन्त-अभव्य जीवों का मिथ्याश्रुत अनादिकाल से चला आ रहा है। उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती। अतः वह मिथ्याश्रुत अनन्त काल तक बना रहेगा।
Elaboration-Ganipitak or the scriptures propagated by the Arhat or the words are saadi saparyavasit from the vyavacchiti naya - or paryayarthik naya (view point of variations). Which means that if with reference to variations it has both beginning as well as end But 4 from avyavacchiti naya or dravyarthik naya (view point of substance) it is anaadı aparyavasit. Which means that m its fundamental existence as jnana it is without any beginning or an end.
From this point of view it has four categories -
(1) With reference to substance--The samyak shrut related to 5 one person is saadı saparyavasit. When a being acquires samyaktva, it is the beginning of samyak shrut for him. When he reaches the first yfi or the third gunasthan, once again mithyatva surfaces. That shrut is $i
lost due to lethargy, perversions, acute pain or loss of memory. In 4 other direction, when the individual keeps on progressing in the right
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श्रुतज्ञान
Shrut--Jnana
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