________________
धारणा-निर्णीत अर्थ को मस्तिष्क में स्थिर करना, धारण करने का नाम धारणा है। ॐ निश्चय अल्पकाल तक स्थिर रहता है फिर ध्यान बँट जाने से अथवा विषयान्तर से वह लुप्त हो कजाता है। परन्तु उससे ऐसे संस्कार जम जाते हैं जिनसे भविष्य में निमित्त का संयोग मिलने पर E वह निश्चित्त विषय याद हो जाता है। ऐसे स्थापित निश्चय को भी धारणा कहते हैं। धारणा के जतीन स्तर बताए हैं
(१) अविच्युति-अवाय में केन्द्रित उपयोग से च्युत या चलित न होना। अथवा ईहा द्वारा प्राप्त निश्चय पर दृढ़ रहना। इस अविच्युति धारणा का अधिकतम काल अन्तर्मुहूर्त होता है। छद्मस्थ का कोई भी उपयोग अन्तर्मुहुर्त से अधिक काल तक एक विषय पर स्थिर नहीं रहता।
(२) वासना-अविच्युति से उत्पन्न संस्कार जब मन में स्थिर हो जाते हैं तो उन्हें वासना कहते * हैं। निश्चय या दृढ़ रहना जब स्वभाव बन जाए तब उसे वासना कह सकते हैं। ये संस्कार संख्यात तथा असंख्यात काल तक रह सकते हैं।
(३) स्मृति-वासना उत्पन्न हो जाने के पश्चात् जब किसी पदार्थ को देखने से अथवा किसी अन्य निमित्त से संस्कार प्रबुद्ध होने के फलस्वरूप जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे स्मृति कहते हैं।
श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के ये चारों भेद इसी निश्चित क्रम से होते हैं। अर्थात् सबसे पहले म अवग्रह फिर ईहा होती है। ईहा के बाद अवाय होता है और अवाय के बाद धारणा होती है। यह परम्परा एक-दूसरे से सम्बद्ध है।
Elaboration-Avagrah-In Jain Agams there are said to be two types of upayog (indulgence)—with form and formless. These two have also been called darshanopayog (indulgence in perception) and jnanopayog (indulgence in knowledge). Darshanopayog precedes jnanopayog; that is why it has also been mentioned here. To generally know about the existence of a thing through its required partial contact with sense organs and mind is called darshan or perception. Immediately after this is born the knowledge that understands the thing more specifically, recognizing if it is human, matter or something else. This is called avagrah. In simpler terms the simple knowledge devoid of any specific adjectives or other concepts is called avagrah.
Iha—The effort, by way of analyzing the perceived information, Lito intelligently know the subject, that follows avagrah and
१. स एव दृढतमावस्थापन्नो धारणा।-वादिदेव सूरि प्रमाणनय तत्त्वालोकालंकार परि २ श्रुतनिश्रित मतिज्ञान
(३०५ )
Shrutnishrit Mati-Jnana O55555555555555EO
生听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听
听听听听听听听听听听听听FF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FF听听听听
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org