SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ LE C LC LE LE LC LC LE LECC E LC LC LC SN LC LE LC LC LC LE LE C C SSETTERTENT -R - A N . श्रूतनिश्रित मतिज्ञान SHRUT NISHRIT MATI-JNANA ५३ : से किं तं सुयनिस्सियं ? सुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्त, तं जहा (१) उग्गहे, (२) ईहा, (३) अवाओ, (४) धारणा। अर्थ-प्रश्न-यह श्रुतनिश्रित मतिज्ञान क्या है ? उत्तर-श्रुतनिश्रित मतिज्ञान चार प्रकार का है, यथा-(१) अवग्रह, (२) ईहा, 4 (३) अवाय, और (४) धारणा। 53. Question-What is this shrut nishrit mati-jnana? Answer-Shrut nishrit mati-jnana is said to be of four 5 types---(1) Avagraha, (2) Iha, (3) Avaya, and (4) Dharana. विवेचन-अवग्रह-जैन आगमों में उपयोग के दो भेद बताए गए हैं-साकार उपयोग तथा : ॐ अनाकार उपयोग। इन्हें ही ज्ञानोपयोग तथा दर्शनोपयोग भी कहा है। दर्शनोपयोग ज्ञानोपयोग का क पूर्वभावी है अतः यहाँ उसका उल्लेख भी किया है। किसी पदार्थ के साथ इन्द्रिय तथा नो-इन्द्रिय के (मन) आदि का यथोचित आंशिक संबंध होने पर उसके अस्तित्व को अर्थात् सत्ता मात्र को समझ के पाने वाला सामान्य बोध इसे दर्शन कहते हैं। इसके तत्काल बाद मनुष्यत्व, जीवत्व, द्रव्यत्व आदि म सामान्ययुक्त वस्तु को समझ पाने वाला ज्ञान उत्पन्न होता है। इसी को अवग्रह कहते हैं। सरल शब्दों में विशेष्य-विशेषण आदि कल्पनाओं से रहित होने वाला सामान्य ज्ञान अवग्रह कहलाता है। ईहा-अवग्रह के पश्चात् और अवाय से पूर्व विषय के प्रति उत्पन्न हुई उस ज्ञानात्मक (जानने की) चेष्टा को ईहा कहते हैं, जो ग्रहीत अर्थ की पर्यालोचना करे। सामान्य शब्दों में अवग्रह द्वारा ॐ ग्रहण किए हुए सामान्य विषय को विशेष रूप से जानने की जिज्ञासा को ईहा कहते हैं।२ अवग्रह 9 में सत् व असत् दोनों प्रकार के विषय का ग्रहण होता है। उसका विश्लेषण कर असत् को क छोड़कर सत् को ग्रहण करने का कार्य ईहा का है। अवाय-ईहा क्रिया के फलस्वरूप जो निर्णय होता है उसे अवाय कहते हैं। निश्चय तथा निर्णय * अवाय के ही अन्य नाम हैं अर्थात् निश्चयात्मक अथवा निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय कहा जाता है। 4F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 听听听听听听听听 《听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听s55 5F 5FF $ $$$$$$$$$$ भ 卐 १. विषय-विषयि-सन्निपातानन्तरसमुद्भूत-सत्तामात्रगोचर दर्शनाज्जातमाद्यम्। अवान्तर सामान्याकारविशिष्ट वस्तु ग्रहणमवग्रहः। २. अवग्रहीतार्थ विशेषाकांक्षणमीहा। म ३. ईहित विशेष निर्णयोऽवायः। ॐ श्री नन्दीसूत्र ( ३०४ ) ........... Shri Nandisutra 055555555555555555556 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy