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________________ 55555555555555555556 फ्र rizici LEDERE LE LE LE LE LE LE LE LE LC LC LC LE LE कुएँ में झाँका और समझ गया कि पानी का लाल रंग किसी चमकीली वस्तु के प्रतिबिम्ब के कारण है। उसने पेड़ पर चढ़कर वह मूल्यवान मणि ढूँढ़ ली और घर ले आया। adhai (१९) सर्प - श्रमण भगवान महावीर ने अपने प्रथम चातुर्मास के पश्चात् अस्थिक ग्राम श्वेताम्बिका नगरी की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में दक्षिण वाचाला सन्निवेश पड़ता था और फिर उत्तर वाचाला सन्निवेश उत्तर वाचाला के लिए दो मार्ग थे। एक मार्ग घूमकर जाता था तथा दूसरा कनकखल आश्रम के बीच से निकलता था । यह आश्रम किसी समय हरा-भरा था पर अब वीरान पड़ा था। भगवान महावीर इसी बीहड़ सुनसान कॅटीले मार्ग पर जाने को तत्पर हुए। तभी कुछ दूर पर भेड़-बकरियाँ चराते ग्वालों ने पुकारा - " भन्ते ! रुकिए, यह राह बड़ी भयानक है। इस पर एक दृष्टिविष काला नाग रहता है। उसकी जहरीली फुंफकार से पेड़-पौधे भी भस्म हो जाते हैं। इधर से नहीं, दूसरी राह से जाइए। " 455 ग्वालों की यह भयभरी पुकार भगवान महावीर के कानों में पड़ी किन्तु वे स्मितभावपूर्वक अभय मुद्रा में हाथ उठाये आगे बढ़ गए। धीर गंभीर गति से चलते हुए वे उस नाग की बाँबी के निकट पहुॅचे। बॉबी के निकट ही एक उजड़ा-सा देवालय था । वे उसी की छाया में कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ हो गए। कुछ ही देर में फुंकारता हुआ विशालकाय नाग अपनी बॉबी से बाहर निकला । आज बहुत समय पश्चात् कोई मनुष्य उसे दिखाई दिया और वह भी आँखें मूँदे निश्चल निर्भय खड़ा हुआ । नाग को बहुत आश्चर्य हुआ । अपनी जहरीली लाल आँखों से उसने भगवान महावीर को देखा । उसकी विषमयी आँखों से ज्वालाएँ भी निकलने लगीं। वह भयंकर फुंकारें करने लगा। परन्तु भगवान महावीर पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने कई बार अपनी विषैली दृष्टि भगवान महावीर को देखा पर वे ज्यों के त्यों निश्चल खडे रहे। 4 5 6 4 5 5 5 55 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59556 अपने प्रयास निष्फल जाते देख नाग क्रोध से आग-बबूला हो गया और आगे सरक भगवान महावीर के पैर के अंगूठे को डस लिया । भगवान महावीर पर इसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा । नाग का क्रोध और भी बढ़ गया और उसने फिर दो बार भगवान महावीर को डसा । यह भी व्यर्थ गया। तभी उसने देखा कि भगवान महावीर के अंगूठे से रक्त के स्थान पर दूध की धार ! ही जा रही है। अपनी असफलता से भ्रमित-सा हुआ नाग विचार करने लगा। उसके क्रोध का स्थान ले लिया। भगवान महावीर ने देखा कि नागराज को उद्बोधन देने का अवसर आ गया है। शांत-गम्भीर स्वर में बोले - " चंडकौशिक ! समझो ! शांत हो जाओ और अपने पूर्वजन्म को याद करो। क्रोध का शमन करो। " मतिज्ञान (पारिणामिकी बुद्धि ) भगवान महावीर से नाग की दृष्टि मिली तो उसके मन में एक अपूर्व शान्ति फैल गई। वह विचारों में गहरा खो गया । चण्डकौशिक शब्द उसे परिचित - सा लगा। उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न 5 हो गया। पूर्व जीवन की घटनाएँ एक-एक कर उसकी स्मृति में उभरने लगीं फ्र Jain Education International ( २९१ ) 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 565 55 5 595555 For Private & Personal Use Only Mati-jnana (Parinamiki Buddhi) www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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