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________________ 生听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听折听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 55SHEEEEEEEEEEESH चातुर्मास किया। आचार्य के स्थूलिभद्र के अतिरिक्त तीन अन्य मेधावी शिष्य भी थे। चारों शिष्यों ॐ ने अपनी वैराग्य-साधना के स्तर की परीक्षा हेतु चार भिन्न स्थानों पर चार माह तक एकाकी म रहने की आज्ञा ली। एक सिंह की गुफा में रहने चला गया, दूसरा एक भयानक विषधर सर्प के बिल के निकट तथा तीसरा एक कुएँ की पाल पर। स्थूलिभद्र ने अपने लिए कोशा वेश्या का घर 卐 चुना। ____ गणिका कोशा स्थूलिभद्र को एक बार पुनः अपने घर आया देख आनन्द विभोर हो गई। ॐ 卐 उसने स्थूलिभद्र को अपनी रंगशाला में ठहरा दिया और समस्त सुविधाओं का प्रबन्ध कर दिया। स्थूलिभद्र अपनी ध्यान-साधना में लग गए। गणिका कोशा की काम-उत्तेजना पैदा करने वाली प्रवृत्तियाँ अपने चरम पर थीं। उसने अपने सौन्दर्य तथा कला से ध्यान-मग्न स्थूलिभद्र को लुभाने की चेष्टाएँ आरंभ कर दी। स्थूलिभद्र ज. सांसारिक भोगों के क्षणिक आनन्द से भलीभाँति परिचित थे तथा उनकी अन्ततः दुःखों की लम्बी + शृंखला में परिणत हो जाने की अवश्यंभावी प्रक्रिया से भी। अक्षय सुख के मार्ग पर चल पड़ा वह साधक कोशा की लाख चेष्टाओं के बाद भी अडिग, अविचल रहा। स्थूलिभद्र की शांत ॐ ध्यान-मुद्रा से निकली शान्त ऊर्जा ने अन्ततः कोशा को विकार-मुक्त कर दिया। स्थूलिभद्र ने कोशा को उपदेश दिया और वह व्रत धारण कर श्राविका बन गई। चातुर्मास समाप्त होने पर चारों साधक गुरुदेव के पास लौटे और एक-एक कर प्रणाम किया। गुरुदेव ने प्रशंसा करते हुए प्रथम तीनों को कहा-"तुम दुष्कर साधना में सफल हुए।" जब स्थूलिभद्र ने गुरु को नतमस्तक हो प्रणाम किया तो गुरु ने कहा-“तुमने अति दुष्कर साधना में सफलता प्राप्त की है।" गुरु द्वारा स्थूलिभद्र की विशेष प्रशंसा करने पर अन्य तीनों शिष्यों में ईर्ष्या जाग उठी और वे अपने को स्थूलिभद्र के समान सिद्ध करने का अवसर खोजने लगे। आगामी चातुर्मास आरम्भ होने के समय वह अवसर आया। जिस शिष्य ने सिंह की गुफा में चातुर्मास किया था उसने गुरु के निकट जा कोशा वेश्या की चित्रशाला में वर्षाकाल बिताने की अनुमति मांगी। गुरु के आज्ञा न देने पर भी वह हठपूर्वक कोशा के यहाँ चला आया। कोशा ने ॐ भी उसे रहने की अनुमति दे दी। कुछ ही दिनों में वह मुनि अपनी साधना भूल बैठा और कोशाज के रूप-लावण्य पर मोहित हो गया। जब उसने कोशा से अपना प्रणय-निवेदन किया तो कोशा को दुःख हुआ। कोशा ने मुनि को सन्मार्ग पर लाने का निर्णय कर उसे कहा-“मुनिराज ! मैं ॐ गणिका हूँ। मुझसे प्रेम-निवेदन करने से पहले आपको मुझे एक लाख स्वर्ण-मुद्राएँ देनी होगी।" ___मुनि ने कोशा की बात सुनी तो सोच में पड़ गया। उसने पूछा- 'मैं तो संसार-त्यागी भिक्षु हूँ। 卐 मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं है।" कोशा ने उत्तर दिया-"नेपाल-नरेश प्रत्येक साधु को एक के रत्नकंबल प्रदान करता है। उसका मूल्य एक लाख मुद्रा है। तुम नेपाल जाकर वह कंबल ले 步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙 # आओ।" - मतिज्ञान ( पारिणामिकी बुद्धि) ( २७३ ) Mati-jnana (Parinamiki Buddhi) 45 05555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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