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nnanantiy कि कुछ कमाओगे नहीं तो घर कैसे चलेगा। दुःखी वररुचि एक दिन शकटार के घर गया।
शकटार की पत्नी से उसने व्यथा-कथा कही। शकटार की पत्नी ने उसे आश्वासन दिया कि वह 卐 अपने पति को समझायेगी।
रात शकटार के घर लौटने पर उसकी पत्नी ने कहा-“स्वामी ! पंडित वररुचि प्रतिदिन 卐 १०८ श्लोकों से राजा की स्तुति करता है। क्या वे श्लोक सुन्दर नहीं होते या आपको अच्छे
नहीं लगते ? यदि अच्छे लगते हों तो आप गरीब पण्डित की प्रशंसा कर उसका उत्साह क्यों नहीं , + बढ़ाते?"
शकटार ने उत्तर दिया-"वह दंभी है, इसलिए।" पत्नी ने आग्रह किया-"आपके प्रशंसा भरे म दो शब्दों से किसी एक गरीब ब्राह्मण का भला होता है तो कहने में क्या हानि है?" पत्नी की
बात सुनकर शकटार निरुत्तर हो गया। म दूसरे दिन जब दरबार में वररुचि ने राजा की स्तुति की तब शकटार को अपनी पत्नी की * बात याद हो आई और उसने बरबस इतना भर कहा-"उत्तम है।" राजा जैसे इसकी राह ही 卐 देख रहा हो, उसने तत्काल वररुचि को १०८ स्वर्ण-मुद्राएँ दिलवा दीं। वररुचि आज प्रसन्न मन
अपने घर लौटा। 卐 वररुचि के चले जाने के बाद शकटार ने राजा से कहा-"महाराज ! आपने व्यर्थ ही + स्वर्ण-मुद्राएँ दीं। वह तो पुराने प्रचलित श्लोकों को अपनी रचना बताकर आपकी स्तुति करता ॐ है।" राजा ने चकित हो पूछा-"क्या आपके पास इसका कोई प्रमाण है ?" शकटार ने तुरन्त
कहा-“महाराज ! मेरा अविश्वास न करें? वह जो श्लोक सुनाता है वे तो मैं नित्य अपनी 5
पुत्रियों को बोलते सुनता हूँ। आपकी आज्ञा हो तो कल ही राज्यसभा में सिद्ध कर दूंगा।" राजा म ने अनुमति दे दी-“ठीक है, कल उन्हें राजसभा में बुलाओ'। के दूसरे दिन शकटार अपनी सातों कन्याओं को राज्यसभा में ले गया। यथासमय वररुचि आया
और उसने राजा के सम्मान में नव-रचित स्तुति सुनाई। जैसे ही स्तुति पूरी हुई शकटार ने अपनी E ज्येष्ठ कन्या यक्षा को इशारा किया। वह उठकर आगे बढ़ी और वररुचि द्वारा रचित स्तुति को 卐 अक्षरशः सुना दिया। फिर शकटार ने अपनी दूसरी कन्या को इशारा किया। वह अब इसी स्तुति
को दो बार सुन चुकी थी, उसे याद हो गई। वह आगे बढ़ी और उसने भी स्तुति को दोहरा
दिया। इस प्रकार सातों कन्याओं ने बारी-बारी जब वररुचि की स्तुति को दोहरा दिया तो राजा 5 को शकटार की बातों पर विश्वास हो गया। उसने क्रोधित हो वररुचि को दरबार में पुनः आने
के लिए मना कर दिया। क वररुचि समझ गया कि यह सब शकटार की दुरभिसन्धि है। उसने शकटार से बदला लेने
का निश्चय कर लिया। उसने बड़ी चतुराई से गंगा के किनारे एक तख्ता इस प्रकार लगाया कि 卐 उसका एक छोर जल के भीतर रहे और दूसरा जल के बाहर। एक विशेष स्थान पर हल्का-सा
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॥ श्री नन्दीसूत्र
(२७० )
Shri Nandisutra 41 05555555 0
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