SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BO S S55555555555555555te + भी किया। धीरे-धीरे उसने अपने राज्य का विस्तार किया और दीर्घपृष्ठ का संहार कर षट्खण्ड । 卐 पृथ्वी का अधिपति चक्रवर्ती सम्राट् बन गया। (१२) चाणक्य-पाटलिपुत्र नगर के राजा का नाम नन्द था। एक वार किसी बात पर रुष्ट होकर उसने चाणक्य नाम के एक ज्ञानी ब्राह्मण को पाटलिपुत्र नगर से बाहर निकाल दिया। 5 चाणक्य ने संन्यासी वेश धारण किया और स्थान-स्थान पर घूमने लगा। एक दिन वह मौर्य प्रदेश 卐 में पहुंचा। नगर में घूमते हुए उसने देखा कि एक भवन के बाहर एक क्षत्रिय वेशधारी व्यक्ति है उदास बैठा है। चाणक्य ने सहानुभूतिपूर्ण स्वर में उसकी उदासी का कारण पूछा। क्षत्रिय ने कहा-“मेरी पत्नी गर्भवती है और उसे यह दोहद उत्पन्न हुआ है कि चन्द्रमा को उदरस्थ कर लूँ। मैं यह इच्छा कैसे पूरी कर सकता हूँ? फलस्वरूप वह दिन प्रतिदिन दुर्बल होती जा रही है। मुझे है यह डर खाये जा रहा है कि कहीं उसका प्राणान्त न हो जाये।" चाणक्य ने उसे आश्वासन दिया है कि आगामी पूर्णिमा को उसकी पत्नी की इच्छा पूर्ण हो जायेगी। ॐ नगर के बाहर एक उपयुक्त स्थान देखकर चाणक्य ने एक तम्बू गडवाया। तम्बू की छत में उसने उचित आकार का एक छेद करवा दिया। पूर्णिमा की रात प्रथम प्रहर में चाणक्य ने उस क्षत्रिय को सपत्नीक आमन्त्रित किया। जब क्षत्रिय-दम्पति तम्बू में पहुंचे तो चाणक्य ने पारदर्शी पेय पदार्थ से भरी एक थाली क्षत्रिय महिला के सामने धरती पर ऐसे स्थान पर रखी जहाँ छेद के में से चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पड सके। कुछ देर में जैसे ही चन्द्रमा आकाश में उस छेद के ऊपर 卐 पहुंचा थाली में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा। चाणक्य झट से बोल उठा-"बहन ! चन्द्रमा अब थाली में उतर आया है, तुम सावधानी से थाली उठाकर उसे पी जाओ।" वह क्षत्रियाणी थाली में चन्द्र-बिम्ब देख प्रसन्न हुई और थाली उठाकर पेय पदार्थ पीने लगी। इसी बीच चाणक्य ने तम्बू के छेद को पहले से लटकाये एक पर्दे को रस्सी से खींचकर बन्द कर म दिया। क्षत्रियाणी ने जब थाली में रहा पेय पूरा पीकर थाली धरती पर रखी तो देखा कि उसमें | चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब नहीं था। उसे विश्वास हो गया कि उसने चन्द्रमा को उदरस्थ कर लिया है। 5 ॐ वह अपार हर्ष से खिल उठी। धीरे-धीरे उसके स्वास्थ्य में सुधार हो गया और यथासमय उसने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। बालक का नाम चन्द्रगुप्त रखा गया। यही बालक बड़ा होकर चाणक्य की सहायता से नन्दों का नाश कर मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य बना। चाणक्य अपार 卐 पारिणामिकी बुद्धि का धनी था। 10. Kshapak--Once an elderly ascetic, who indulged in harsh 4 austerities, was going with his disciple to seek alms. On the way back 4 5 a frog was crushed to death under his feet. When the disciple saw 4i this he requested his guru to do pratıkraman (atonement). The 55 ascetic did not pay any attention. At the time of the evening 4 pratikraman (critical review) the disciple again reminded him for y मतिज्ञान ( पारिणामिकी बुद्धि) ( २६५ ) Mati.jnana (Parnamiki Buddhi) 0555555555555555550 FFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 生听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFF %% % % Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy