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________________ 85 5 5 5 55 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 6 7 IF ! ! ! ! ! !କ ତ 李车安 455 करे- वह न शुक्ल पक्ष में आवे न कृष्ण पक्ष में, न दिन में आवे न रात में, न धूप में आवे न छाया में, न आकाशमार्ग से आवे न भूमि से, न मार्ग से आवे और न उन्मार्ग से, न स्नान करके आवे और न ही बिना स्नान किए। किन्तु उसे आना अवश्य है । " राजा की यह असंभव -सी नियमावली सुन सारी राज्यसभा में सन्नाटा छा गया । सब यही सोच रहे थे कि इस नियम से राजा के पास आना तो वयस्क और अनुभवी व्यक्ति के लिए भी संभव नहीं फिर बालक की तो बात ही क्या । किन्तु रोहक निश्चिन्त था । वह सहज भाव से अपने गॉव लौट गया । अगली अमावस्या और एकम के संधि समय से कुछ पूर्व उसने कंठ तक स्नान किया और संध्या के समय सिर पर चालनी का छत्र धारणकर, एक मेंढे पर बैठकर गाडी के पहियों के बीच के मार्ग से राजा के पास चल दिया। राजा को भेंट देने हेतु रास्ते में से मिट्टी का एक ला 5. उठा लिया। 555555555555555555555550 राजा के पास पहुँच उसने यथोचित रीति से अभिवादन किया और बताया कि किस प्रकार उसने राजा के बताए नियमों का पालन किया इसके बाद उसने राजा को मिट्टी का ढेला भेंट किया। राजा ने चकित हो पूछा - " यह क्या है ?" रोहक ने विनयपूर्वक उत्तर दिया- "महाराज ! आप पृथ्वीपति हैं, अतः मैं आपकी सेवा में पृथ्वी लाया हूँ।” राजा प्रसन्न हुआ और उसने रोहक को अपने पास रहने को कहा। गाँव वाले प्रसन्न होकर लौट गए। रात में राजा ने रोहक को अपने निकट ही सुला लिया। दूसरे प्रहर में राजा की नींद खुली तो उसने कहा - "रोहक ! जाग रहे हो या सो रहे हो ? रोहक ने तपाक से उत्तर दिया- " जाग रहा हूँ महाराज !” " 'क्या सोच रहे हो ?" "मैं सोच रहा हूँ कि बकरी के पेट में गोल-गोल मींगनियाँ कैसे बन जाती हैं ? " राजा को कोई उत्तर नहीं सूझा तो उसने रोहक से ही पूछा - " क्या सोचा? कैसे बनती हैं ? " “महाराज ! बकरी के पेट में संवर्त्तक नामक एक विशेष प्रकार की वायु होती है, उसी के प्रभाव से मींगनियाँ गोल बन जाती हैं।" यह कहकर रोहक सो गया। (१२) पत्ते - रात्रि के तीसरे प्रहर में राजा ने फिर पुकारा - "रोहक जाग रहे हो ?" " जाग रहा हॅू, स्वामी !” सोच रहे हो ?" "क्या “मैं सोच रहा हॅू कि पीपल के पत्ते का डंठल बड़ा होता है या शिखा ?" ( १७७ ) मतिज्ञान ( औत्पत्तिकी बुद्धि ) Jain Education International For Private Personal Use Only Mati-jnana (Autpattiki Buddhi) फक www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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