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परोक्ष ज्ञान INDIRECT KNOWLEDGE
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वाग्योग और श्रूत का वर्णन VAGYOGA AND SHRUT (SPEECH AND VERBALISATION) ४४ : केवलनाणेणऽत्थे, नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे।
ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुअं हवइ सेसं। से त्तं केवलनाणं
से तं नोइन्दियपच्चक्खं। अर्थ-केवलज्ञान द्वारा सब पदार्थों को देख-जानकर उनमें से जो कुछ वर्णन करने के योग्य होता है अर्थात् वाणी द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है उसे तीर्थंकर भगवान
अपने प्रवचनों द्वारा प्रतिपादित करते हैं। यही वचनयोग अर्थात् द्रव्य श्रुत होता है, शेष ॐ श्रुत अप्रधान होता है। ___इस प्रकार केवलज्ञान का विषय सम्पूर्ण हुआ और नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष का प्रकरण भी समाप्त हुआ।
44. After seeing and knowing all substances, Tirthankar 55 Bhagavan propagates through his discourse all what is worth
describing or which can be expressed through speech. This is 4 called vachan-yoga or dravya shrut (the combination of thought $ and speech or the material manifestation of knowledge). All other shrut is insignificant.
This concludes the description of Kewal-jnana and also Noindriya pratyaksh. म विवेचन-तीर्थंकर भगवान अपने केवलज्ञान से अनन्त पदार्थों को अनन्त भावों को +
जानते-देखते हैं परन्तु वह सभी शाब्दिक अभिव्यक्ति के परे हैं। अतः जो जितना शब्दों में . 卐 अभिव्यक्त हो सकता वे उतना ही कहते हैं। जैनदर्शन के अनुसार वस्तुतः केवलज्ञानी के प्रवचन +का कारण उनका केवलज्ञान नहीं है अपितु वचनयोग है जो भाषा-पर्याप्ति नामक कर्म के उदय।
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परोक्ष ज्ञान
( १६१ )
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