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________________ 听听听听听听听听听听听%听听听听听听听听听听听听听听听听监听听听听听听听听听听听听听听 醫院醫醫助弱聯盟院等醫醫醫醫醫監警略 %E5S विवेचन-केवलज्ञान और केवलदर्शन के उपयोग के विषय में आचार्यों की विभिन्न धारणाएँ ॐ हैं। जैनदर्शन के अनुसार उपयोग बारह प्रकार के होते हैं-पॉच ज्ञान, तीन अज्ञान और चार दर्शन। १. मतिज्ञान, २. श्रुतज्ञान, ३. अवधिज्ञान, ४. मन पर्यवज्ञान, और ५. केवलज्ञान। १. मतिअज्ञान, २. श्रुतअज्ञान, और ३. विभंगज्ञान। १. चक्षुदर्शन, २. अचक्षुदर्शन, ३. अवधिदर्शन, और ४. केवलदर्शन। इनमें से किसी एक में कुछ समय तक स्थिर तल्लीन हो जाने को उपयोग कहते हैं। केवलज्ञान और केवलदर्शन के अतिरिक्त शेष दस उपयोग छद्मस्थ ॐ अवस्था में होते हैं। - मिथ्यादृष्टि में तीन अज्ञान और तीन दर्शन ये छह उपयोग होते हैं। छद्मस्थ सम्यग्दृष्टि में प्रचार ज्ञान और तीन दर्शन ये सात उपयोग होते हैं। छद्मस्थ के दस उपयोग क्षायोपशमिक होते हैं 卐 और इनमें ह्रास-विकास तथा न्यूनाधिकता होती रहती है। केवलज्ञान और केवलदर्शन क्षायिक और सम्पूर्ण होते हैं। इनमें न तो ह्रास-विकास होता है और न न्यूनाधिकता। छद्मस्थ का उपयोग क्रमभावी है अर्थात् एक समय में एक ही उपयोग होता है, इस विषय में सभी आचार्य एक मत हैं। किन्तु केवली के उपयोग के सम्बन्ध में तीन धारणाएँ हैं (१) निरावरण ज्ञान-दर्शन होते हुए भी केवली में एक समय में एक ही उपयोग होता है। जब ज्ञानोपयोग होता है तब दर्शनोपयोग नहीं होता और जब दर्शनोपयोग होता है तब जा ज्ञानोपयोग नहीं होता। इस मान्यता को क्रमभावी तथा एकान्तर उपयोगवाद कहते हैं। इस धारणा +के समर्थकों में थे जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। ॐ (२) दूसरी धारणा है कि जैसे सूर्य का प्रकाश और ताप युगपत् होता है अर्थात् एक ही समय में दोनों क्रियाएँ घटित होती हैं वैसे ही केवलज्ञान और केवलदर्शन भी युगपत् होते हैं। दोनों एक साथ अपने-अपने विषय का ग्रहण करते रहते हैं। इस मान्यता के समर्थकों में थे प्रसिद्ध तार्किक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर। यह युगपद् उपयोगवाद नाम से प्रसिद्ध है। (३) तीसरी धारणा है अभेदवादियों की। इनके अनुसार केवलज्ञान और केवलदर्शन एक रूप के होते हैं। जब किसी विषय को ग्रहण करने का माध्यम ज्ञान हो तब दर्शन का पृथक् अस्तित्व अर्थहीन हो जाता है। और फिर ज्ञान को प्रमाण माना है दर्शन को नहीं। क्योंकि केवलज्ञानी ॐ प्रत्यक्ष और निर्निमित्त अनुभव करता है अतः उसका दर्शन ज्ञान ही है। इस मान्यता के समर्थक आचार्य वृद्धवादी थे। यह अभिन्न उपयोगवाद है। उपाध्याय यशोविजय जी ने इन तीनों मान्यताओं का नयों के आधार पर समन्वय किया हैउनका कहना है कि ऋजुसूत्रनय से देखें तो एकान्तर उपयोगवाद उपयुक्त है। व्यवहारनय से देखें तो युगपद् उपयोगवाद ठीक है और संग्रहनय से अभेद उपयोगवाद उचित है। वस्तुतः इस विषय 卐 में मतभेद को स्थान नहीं हैं। केवलज्ञान और केवलदर्शन शक्यातीत और तर्कातीत विषय हैं अतः ये सभी धारणाएँ उन्हें समझने के प्रयासों की भिन्नताओं से अधिक कुछ नहीं। नन्दीसूत्र की चूर्णि एवं मलयगिरिकृत टीका में विस्तारपूर्वक यह चर्चा की गई है। श्री नन्दीसूत्र Shri Nandisutra %%% %紧號步野等%%%%紧紧紧贴男防紫验货与场所的 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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