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________________ 555555555555O 10. Napunsakling Siddha 12. Anyaling Siddha 14. Ek Siddha 9. Purushling Siddha 11. Svaling Siddha 13. Grihiling Siddha 15. Anek Siddha 56 The Kewal-jnana of all these Siddhas is known as Anantar Siddha Kewal-jnana. विवेचन- जिन आत्माओं को सिद्ध हुए एक समय हुआ है वे अनन्तर सिद्ध हैं। भवोपाधि पूर्वभव समय में वे तीर्थंकर बने उस भव में वे जिस रूप में थे तदनुसार इनके १५ भेद होते हैं(१) तीर्थ सिद्ध-धर्म-तीर्थ की स्थापना के बाद अर्थात् उस तीर्थंकर के शासनकाल में जो सिद्ध होते हैं उन्हें तीर्थ सिद्ध कहते हैं - धर्म - तीर्थ अर्थात् साधु-साध्वी - श्रावक-श्राविका का चतुर्विध संघ | (२) अतीर्थ सिद्ध तीर्थ की स्थापना होने से पूर्व अथवा तीर्थ के विच्छेद के पश्चात् जो जीव सिद्ध होते हैं उन्हें अतीर्थ सिद्ध कहते हैं। उदाहरणस्वरूप - भगवान ऋषभदेव की माता मरुदेवी ने 5 तीर्थ की स्थापना से पूर्व सिद्धगति पाई थी । भगवान सुविधिनाथ से लेकर भगवान शान्तिनाथ के शासन तक बीच के सात अन्तरों में तीर्थोच्छेद होता रहा। उन अन्तर कालों में जो भी अन्तकृत् केवली हुए उन्हें भी अतीर्थ सिद्ध कहते हैं। (३) तीर्थंकर सिद्ध- जो तीर्थंकर पद प्राप्त करने के बाद सिद्ध होते हैं उन्हें तीर्थंकर सिद्ध कहते हैं जैसे भगवान महावीर | (४) अतीर्थंकर सिद्ध- तीर्थंकर के अतिरिक्त जितने भी सिद्ध होते हैं वे सभी अतीर्थंकर सिद्ध कहलाते हैं जैसे गजसुकुमाल मुनि । (५) स्वयंबुद्ध सिद्ध - जो बाह्य निमित्त के बिना तथा किसी के उपदेश तथा प्रवचन सुने बिना ही जातिस्मरण ज्ञान व अवधिज्ञान के द्वारा स्वयं विषय कषायमुक्त हो बोध प्राप्त करते हैं वे स्वयं बुद्ध होते हैं। वे जब सिद्ध बन जाते हैं तब स्वयंबुद्ध सिद्ध कहलाते हैं जैसे सभी तीर्थंकर । (६) प्रत्येकबुद्ध सिद्ध- जो बिना किसी का उपदेश सुने किसी अन्य बाह्य निमित्त से प्रेरित हो बोध प्राप्त करके सिद्ध होते हैं उन्हें प्रत्येकबुद्ध सिद्ध कहते हैं, जैसे - करकण्डू और नमिराजा आदि । (देखें चित्र १३ ) 5 (७) बुद्धबोधित सिद्ध--जो तीर्थंकर अथवा आचार्य आदि के उपदेश से बोध प्राप्त कर 5 सिद्धगति प्राप्त करते हैं उन्हें बुद्धबोधित सिद्ध कहते हैं, जैसे - चन्दनबाला, जम्बूकुमार, अतिमुक्तक मुनि आदि। (८) स्त्रीलिंग सिद्ध-स्त्रीलिंग स्त्रीत्व का इंगित करता है। यह तीन प्रकार का होता है - एक स्त्री निर्वृत्ति, दूसरा स्त्रीवेद ( स्त्रीत्व भाव), और तीसरा स्त्रीवेष | स्त्री निर्वृत्ति अर्थात् स्त्रीरूपी 5 केवलज्ञान का स्वरूप ( १५३ ) Jain Education International �* 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 ! ! ! !F F S S ନ ! For Private & Personal Use Only -45 Kewal-Janana 555556 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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