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acquiring mati, shrut and avadhi-jnana as well as all the four jnana 卐 this figure is 8 samayas.
10. Avagahana dvar (the parameter of physical dimension)-Of those having maximum physical dimensions every samaya some beings become Siddha continuously for a maximum of 2 samayas. In
case of those having medium and minimum physical dimensions this i figure is 8 and 2 samayas respectively.
11. Utkrisht dvar (the parameter of upper limit)-Of the 4 Apratipati samyaktvi beings every samaya some beings become 4 \ Siddha continuously for a maximum of 2 samayas. In case of those i
who have fallen for countable and uncountable period and those who si have fallen for infinite period, having medium and minimum physical dimensions this figure is 4 and 8 samayas respectively.
如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FF$乐
(६) अन्तरद्वार 6. ANTAR DVAR (THE PARAMETER OF GAP OR VOID) जितने काल तक एक भी जीव सिद्ध न हो वह समय अन्तरकाल है। इसे विरहकाल भी कहते हैं। यह विभिन्न उपद्वारों से इस प्रकार बताया है
(१) क्षेत्र द्वार-समस्त अढाई द्वीप में विरहकाल कम से कम एक समय का और अधिकतम ६ मास का होता है। जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र और धातकीखण्ड के महाविदेह क्षेत्र में के अधिकतम अन्तर दो से ९ वर्ष का होता है। पुष्करार्द्ध द्वीप में यह एक वर्ष से कुछ अधिक के समय का होता है।
(२) काल द्वार-५ भरत तथा ५ ऐरावत क्षेत्र में १८ कोटाकोटि सागरोपम से कुछ कम के समय का विरह होता है। उत्सर्पिणी काल का चौथा आरा दो कोड़ाकोडी सागरोपम, पाँचवाँ तीन .
और छठा चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। अवसर्पिणी काल का पहला आरा चार, दूसरा
तीन और चौथा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। ये सब १८ कोड़ाकोड़ी हुए। इनमें से है उत्सर्पिणी काल में चौथे आरे की आदि में २४वें तीर्थंकर का शासन संख्यात काल तक चलता ॥ है है। तत्पश्चात् विच्छेद हो जाता है। अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्तिम भाग में पहले
तीर्थंकर पैदा होते हैं। उनका शासन तीसरे आरे में एक लाख पूर्व तक चलता है, इस कारण ॐ अठारह कोड़ाकोड़ी से कुछ न्यून कहा गया है। उस शासन में से सिद्ध हो सकते हैं, उसके म 卐 व्यवच्छेद होने पर उस क्षेत्र में जन्मे हुए सिद्ध नहीं होते। संहरण की अपेक्षा से अधिकतम अन्तर : संख्यात हजार वर्ष का होता है।
(३) गति द्वार-नरक से निकले हुए जीवों के सिद्ध होने का अधिकतम अन्तर पृथक्त्व (२ से ९) हजार वर्ष का, तिर्यंच से निकले सिद्धों का पृथक्त्व १०० वर्ष का, तिर्यंच योनि और सौधर्म श्री नन्दीसूत्र
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Shri Nandisutra 4955555555555550
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