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(४) स्पर्शना द्वार 4. SPARSHA DVAR (THE PARAMETER OF CONTACT) 卐 सिद्धगति में निर्मल आत्म-प्रदेशों की एक-दूसरे में अवगाहना (परस्पर मिलन) होती है। भूत,
वर्तमान और भविष्य के सभी सिद्धों के आत्म-प्रदेशों का परस्पर संयोग हो जाता है। जहाँ अनन्त । 卐 है वहाँ एक है, जहाँ एक है वहाँ अनन्त है। स्थूल रूप से जैसे हजारों दीपकों का प्रकाश पुंजीभूत
होता है उसी प्रकार अपनी पृथक् अस्मिता लिए सिद्ध आत्माएँ एकीकृत हो जाती हैं। इसके भी १५ उपद्वार हैं जिन्हें पूर्व समान ही समझना चाहिए।
In the Siddha state the stainless soul-bits of Siddhas mutually ___coalesce. The soul-bits of all the Siddhas of past, present, and future,卐 merge into one. Where there are infinite there is one and where there is one there are infinite. In earthly terms, as the rays of light from thousands of lamps merge into a beam, so do the Siddha souls, with their independent identity intact, combine into one. This parameter also has 15 sub-parameters which can be defined as before.
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(५) कालद्वार 5. KAAL DVAR (THE PARAMETER OF TIME) जिन क्षेत्रों से एक समय में १०८ सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ से निरन्तर आठ समय तक सिद्ध होते हैं। जिस क्षेत्र से १0 अथवा २0 सिद्ध हो सकते हैं वहाँ चार समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। जहाँ से २, ३ अथवा ४ सिद्ध हो सकते हैं वहाँ दो समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। इसमें केवल ११ उपद्वार घटाए जा सकते हैं--
(१) क्षेत्र द्वार-१५ कर्मभूमियों में एक समय में अधिकतम १0८ सिद्ध हो सकते हैं तथा वहाँ निरन्तर आठ समय तक सिद्ध हो सकते हैं। अकर्मभूमि तथा अधोलोक में चार समय तक,5 नन्दनवन, पाण्डुकवन और लवण-समुद्र में दो समय तक और ऊर्ध्वलोक में चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं।
(२) काल द्वार-प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के तीसरे व चौथे आरे में निरन्तर आठ-आठ समय तक और शेष आरों में ४-४ समय तक सिद्ध हो सकते हैं।
(३) गति द्वार-देवगति से आये हुए जीव अधिकतम आठ समय तक और शेष तीन गतियों से आये जीव चार-चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं।
(४) वेद द्वार-जो पूर्वभव में पुरुष थे और इस भव में भी पुरुष रुप में जन्मे हैं वे अधिकतम ८ समय तक और शेष ४ समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं।
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केवलज्ञान का स्वरूप ( १४३ )
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