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@55555LE (७) चारित्र द्वार - सामायिक चारित्र के साथ सूक्ष्मसम्पराय तथा यथाख्यातचारित्र पालकर तथा छेदोपस्थापनीय चारित्र सहित चार चारित्रों को पालकर एक समय में १०८ १०८ सिद्ध हो सकते हैं। पाँचों चारित्रों की आराधना करने वाले एक समय में केवल १० सिद्ध हो सकते हैं। (८) बुद्ध द्वार - एक समय में प्रत्येकबुद्ध १०, स्वयंबुद्ध ४ और बुद्धवोधित १०८ सिद्ध हो सकते हैं।
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( ९ ) ज्ञान द्वार - पूर्वभव की अपेक्षा से मति एवं श्रुतज्ञान के धारक एक समय में अधिक से अधिक चार, मति, श्रुत व मनःपर्यव वाले दस, चार ज्ञान वाले १०८ जीव केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हो सकते हैं।
(१०) अवगाहना द्वार - एक समय में न्यूनतम अवगाहना वाले चार, मध्यम अवगाहना वाले एक सौ आठ और अधिकतम अवगाहना वाले दो सिद्ध अधिक से अधिक हो सकते हैं।
(११) उत्कृष्ट द्वार - अनन्तकाल के प्रतिपाती ( सम्यक्त्व प्राप्त करने के पश्चात् गिरे हुए) पुनः सम्यक्त्व की स्पर्शना करें तो एक समय में १०८ सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे ही असंख्यातकाल एवं संख्यातकाल के प्रतिपाती दस-दस सिद्ध हो सकते हैं। अप्रतिपाती सम्यक्त्वी चार सिद्ध हो सकते हैं।
(१२) अन्तर द्वार - एक, दो, तीन आदि अनेक समयों का अन्तर पाकर सिद्ध हो सकते हैं।
(१३) अनुसमय द्वार - यदि आठ समय तक निरन्तर सिद्ध होते रहें तो प्रत्येक समय में कम से कम 9 और अधिक से अधिक ३२ सिद्ध हो सकते हैं। इसके बाद नवें समय में अवश्य निरन्तरता टूट जाती है अर्थात् नवें समय में कोई सिद्ध नहीं होता । यदि सिद्ध होने वाले जीवों की संख्या एक समय में ३३ से ४८ हो तो सात समय के बाद आठवें समय में निरन्तरता टूट जाती है। यह क्रम इस प्रकार चलता है-
४९ से ६० सिद्ध- सातवें समय में अन्तर पड़ता है ।
६१ से ७२ सिद्ध- छठे समय में अन्तर पडता है। ७३ से ८४ सिद्ध - पॉचवें समय में अन्तर पड़ता है। ८५ से ९६ सिद्ध-चौथे समय में अन्तर पड़ता है।
९७ से १०२ सिद्ध- तीसरे समय में अन्तर पडता है।
१०३ से १०८ सिद्ध-दूसरे समय में अन्तर पडता है।
(१४) संख्या द्वार - एक समय में न्यूनतम १ और अधिकतम १०८ सिद्ध होते हैं। (१५) अल्पबहुत्व द्वार - पूर्वोक्त प्रकार से ही समझना चाहिए।
1. Kshetra dvar (the parameter of area ) — With reference to transmigration in the upward direction, four beings become Siddha
केवलज्ञान का स्वरूप
( १३९ )
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