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________________ O 65 565 555 45 46 4 5 6 5 5 5 5 445555 5 5 5 46 44 45 46 55555570 (७) चारित्र द्वार - पाँच चारित्र होते हैं जिनकी आराधना से सिद्धगति प्राप्त होती है। इनमें से सामायिक प्राथमिक तथा यथाख्यात चारित्र अवश्यंभावी आवश्यकता है, इसके अभाव में कोई आत्मा सिद्ध नहीं हो सकती। इसके साथ अन्य तीनों में से किन्हीं के संयोग से सिद्धगति प्राप्त होती है - कोई सामायिक और सूक्ष्मसंपराय के संयोग से, कोई सामायिक, छेदोपस्थापनीय तथा सूक्ष्मसम्पराय के संयोग से तथा कोई तीनों के संयोग से सिद्ध बनते हैं । ककककक फ (८) बुद्ध द्वार - प्रत्येकबुद्ध, स्वयंबुद्ध तथा बुद्धबोधित इन तीनों अवस्थाओं से सिद्ध होते हैं । ( विस्तार आगे यथास्थान देखें) (९) ज्ञान द्वार - तात्कालिक रूप से मात्र केवलज्ञान के साथ ही सिद्ध होते हैं। किन्तु पूर्वावस्था की अपेक्षा से मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यवज्ञान के विभिन्न संयोगों से केवलज्ञान तक पहुँचकर सिद्ध होते हैं। (१०) अवगाहना द्वार - कोई वस्तु आकाश में जितना क्षेत्र घेरती है उसे अवगाहना कहते हैं । न्यूनतम दो हाथ, मध्यम सात हाथ और अधिकतम ५०० धनुष की अवगाहना वाले जीव सिद्ध होते हैं। (११) उत्कृष्ट द्वार - काल के संदर्भ में कोई सम्यक्त्व प्राप्त होने के पश्चात् देशोन अर्द्ध-पुद्गल परावर्तन काल (काल का एक दीर्घ भाग) बीतने पर सिद्ध होता है, कोई अनन्त काल के बाद, कोई असंख्यात काल के बाद और कोई संख्यात काल के बाद सिद्ध होता है । (१२) अन्तर द्वार - दो सिद्ध होने के बीच का अन्तरकाल कम से कम एक समय और 5 अधिक से अधिक छह मास है। छह मास बीतने पर कोई न कोई जीव सिद्ध होता ही है । 5 (१३) अनुसमय द्वार - कम से कम दो समय तक और अधिक से अधिक आठ समय तक 5 निरन्तर सिद्ध होते हैं। आठ समय के पश्चात् अन्तर पड़ जाता है । (१४) संख्या द्वार - एक समय में कम से कम 9 और अधिक से अधिक १०८ सिद्ध हो सकते हैं। इससे अधिक नहीं । (१५) अल्पबहुत्व द्वार - एक समय में एक साथ दो, तीन आदि संख्या में सिद्ध होने वाले बहुत कम जीव हैं। एक-एक कर होने वाले उनसे संख्यात गुणा अधिक हैं। In absence of the belief in the existence of Siddha the journey on the spiritual path does not even begin. Therefore, the recognition of the status of Siddha is the first primary parameter. The fifteen secondary parameters to help understand this are as follows 1. Kshetra dvar (the parameter of area ) — Beings living in the 15 karmabhumi (lands of activity) of adhai-dveep (two and a half continents) attain the Siddha status. In context of transmigration, ( १३५ ) 卐 केवलज्ञान का स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only 45 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5555 5 5 5 5 555 5 4 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 -फ्र Kewal - Janana 5 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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