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________________ Ohh के 2 न OF 7 7 7 IF 7 ! 7 4 5 6 7 5 46 47 47 4 5 5 5 5 5 5 5 5 ! ! ! ! ! ! ! 6 5 5 4 5 6 455 भावओ णं-उज्जुमई अनंते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणं अनंतभागं जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । अर्थ - वह मनः पर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है । यथा- ऋजुमति तथा विपुलमति । इन दोनों के भी चार-चार विभाग होते हैं - यथा - (१) द्रव्य से, (२) क्षेत्र से, (३) काल से, और भाव से । (१) द्रव्य से - ऋजुमति अनन्त प्रदेशों वाले अनन्त स्कन्धों को विशेष तथा सामान्य रूप जानता- देखता है | विपुल मति उन्हीं स्कन्धों को कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल ( भ्रम रहित ) रूप से जानता - देखता है। से 1 LEVE (२) क्षेत्र से - ऋजुमति कम से कम अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने से क्षेत्र को और अधिकतम अधोदिशा में रत्नप्रभा पृथ्वी के सबसे नीचे सूक्ष्मस्तर तक, उर्ध्वदिशा में ज्योतिष चक्र के ऊपरी स्तर तक और तिर्यक (तिरछे ) लोक में मनुष्य क्षेत्र के अढाई द्वीप समुद्र पर्यन्त, पन्द्रह कर्म भूमियों, तीस अकर्म भूमियों और छप्पन अन्तर द्वीपों को तथा उनमें रहे पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानता व देखता है। उन्हीं भावों को विपुलमति अढाई अंगुल अधिक क्षेत्र तक कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से जानता- देखता है। (३) काल से - ऋजुमति कम से कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक और अधिकतम भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक भूत और भविष्यत् काल को जानता व देखता है। उसी काल को विपुलमति उससे कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से जानता देखता है। (४) भाव से - ऋजुमति अनन्त भावों को जानता व देखता है किन्तु इन सभी अनन्त भावों के अनन्तवें भाग को ही जानता देखता है। उन्हीं भावों को विपुलमति कुछ अधिक विपुल, विशुद्ध और निर्मल रूप से भ्रान्ति रहित जानता- देखता है। (देखें चित्र ११ ) (1) With reference to matter-a rijumati sees and knows infinite skandhas (blocks) having infinite sections or parts generally or in brief and specially or in detail; a vipul mati sees ( १२२ ) Shri Nandisutra श्री नन्दी सूत्र 37. In terms of potency this Manah - paryav jnana is of two types -- riju (lesser ) mati and vipul ( greater) mati. These in turn have four categories each - ( 1 ) with reference to matter, (2) with reference to area or space, ( 3 ) with reference to time, and (4) with reference to mode. @फ्र Jain Education International 555 For Private & Personal Use Only 55555 www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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