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________________ 听听听听听听听当劳当劳第勞斯瑞斯明斯號步步步步步步步步步步步助步险 5 of Avadhi-jnana. This declining Avadhi-jnana is known as 4 Heeyaman Avadhi-jnana. विवेचन-अवधिज्ञान का कारण क्षयोपशम जनित शुद्धि है। कलुषित विचारों का संयोग और क्लेश जनित आर्तध्यान ये दोनों ही शुद्धि को कलुषित करते हैं, क्षयोपशम को निरस्त करते हैं और अवधिज्ञान को हीन करते हैं। प्रशस्त योग और शान्ति-ये आत्मिक शुद्धि और अवधिज्ञान की वृद्धि में सहायक बनते हैं। Elaboration The purity gained by kshayopasham is the cause of Avadhi-inana. Any contact with tainted thoughts and the disturbed 5 mental state due to anguish tarnish purity, nullify kshayopasham 96 and reduce Avadhi-jnana. Spiritual endeavour and mental peace help $ gain purity of soul and increase Avadhi-jnana. E. S听听听听听听听听F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 प्रतिपाति अवधिज्ञान का स्वरूप PRATIPATI AVADHI-JNANA २३ : से कि तं पडिवाई ओहिणाणं ? -पडिवाइ ओहिणाणं जण्णं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिज्जतिभागं वा संखिज्जतिभागं वा, बालग्गं वा बालग्गपुहुत्तं वा, लिक्खं वा लिक्खपुहत्तं वा, जूयं वा जूयपुत्तं वा, जवं वा जवपुहुत्तं वा, अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा पायं वा पायपुहुत्तं वा, विहत्थिं वा + विहत्थिपुहुत्तं वा, रयणिं वा रयणिपुहुत्तं वा, कुच्छिं वा कुच्छिपहुत्तं वा, धणुयं वा धणुयपुहुत्तं वा, गाउयं वा गाउयपुहुत्तं वा, जोयणं वा जोयणपुहुत्तं वा, जोयणसयं जोयणसयपुहुत्तं वा, जोयणसहस्सं वा जोयणसहस्सपुहत्तं वा, जोयणसतसहस्सं वा जोयणसतसहस्सपुहुत्तं वा, जोयणकोडिं वा जोयणकोडिपुहुत्तं वा, जोयणकोडाकोडिं वा जोयणकोडाकोडिपुहत्तं वा ? उक्कोसेण लोगं वा पासित्ता णं पडिवएज्जा। से तं पडिवाइ ओहिणाणं। __ अर्थ-प्रश्न-प्रतिपाति अवधिज्ञान का स्वरूप क्या है ? उत्तर-कम से कम एक अंगुल के असंख्यातवें भाग को और फिर क्रमशः एक अंगुल के संख्यातवें भाग, बालाग्र या बालाग्रपृथक्त्व, लीख या लीखपृथक्त्व, यूका ( ) या यूकापृथक्त्व, यह यव (जौ) या यवपृथक्त्व, अंगुल या अंगुलपृथक्त्व, पाद या पादपृथक्त्व, म वितस्ति (विलाँद) या वितस्तिपृथक्त्व, रत्नि (हाथ) या रनिपृथक्त्व, कुक्षि (दो हाथ) या . कुक्षिपृथक्त्व, धनुष (चार हाथ) या धनुषपृथक्त्व, कोस या कोसपृथक्त्व, योजन या ॐ श्री नन्दीसूत्र ( १०० ) Shri Nandisutra 05555555555555555516 少听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听所听听听听听听听听听听听听听听听 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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