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步步步步步牙牙牙牙牙牙齿%%%%%%% % K$ $$$ $ ६. शर्कराप्रभा नरक तीन कोस
साढ़े तीन कोस म ७. रत्नप्रभा नरक साढे तीन कोस
चार कोस ८. असुरकुमार देव २५ योजन
असंख्यात द्वीप-समुद्र ९. नागकुमार देव २५ योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र १०. स्तनितकुमार देव २५ योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र ॐ ११. वाणव्यन्तर देव २५ योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र १२. ज्योतिष्क देव संख्यात योजन
संख्यात योजन १३. सौधर्मकल्प (देवलोक) अंगुल का असंख्यातवाँ भाग आधोदिशा में रत्नप्रभा के
नीचे के चरमान्त तक, ऊर्ध्वदिशा में सौधर्मकल्प के ध्वज तक तथा तिर्यक दिशा 5
में असंख्यात द्वीप-समुद्र तक । १४. सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक
शर्कराप्रभा के चरमान्त तक + १५. ब्रह्म और लान्तक देवलोक बालुकाप्रभा के चरमान्त तक १६. महाशुक्र और सहस्रार देवलोक
पंकप्रभा के चरमान्त तक ॐ १७. आणत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोक
धूमप्रभा के चरमान्त तक १८. तेरहवें से अठारहवें देवलोक
तमःप्रभा के चरमान्त तक म १९. ग्रैवेयक
तमस्तमा के चरमान्त तक F २0. अनुत्तरोपपातिक देवलोक
सम्पूर्ण लोक Elaboration-The Antagat Avadhu-jnana is limited and the 45 Madhyagat is unlimited. The Gods, the hell beings and the 155 fi Tirthankars as a rule naturally acquire Madhyagat Avadhi-jnana. 4 The beings of the animal world have scope of acquiring only Antagat
Avadhi-jnana. But human beings have a possibility of acquiring both
types of Anugamik Avadhi-jnana. 5. The use of the terms countable and uncountable yojans indicates
that in context of the area covered there may be many levels of it
Avadhu-jnana. For example-the beings of the Ratnaprabha Hell 45 have Avadhi-jnana covering a minimum area of three and a half $i
our yojans; similarly the Avadhi- 4 jnana of the gods of the Saudharma Kalp covers a minimum area of
an infinitesimal part of an angul (the width of a human finger) and a $ maximum area extending up to the end of the Ratnaprabha Hell. अवधि-ज्ञान
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Avadhi-Jnana 4 牙岁岁岁岁岁岁%%%%%%%%%%%%%%%%岁岁岁岁岁岁男命
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