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In the same way a listener who, when committing a mistake, at once begs pardon of his guru and colleagues and proceeds to rectify 4 the mistake and resume acquiring knowledge, successfully absorbs 4
knowledge and progresses in the direction of his goal. Such listeners are worthy.
तीन प्रकार की परिषद
THREE TYPES OF CONGREGATION धर्म सुनने के लिए उपस्थित श्रोताओं के समूह को परिषद् कहते हैं। इनके विषय में कहा गया है
A group of listeners assembled to listen to a religious discourse is called a congregation About this it is mentioned that,
५२ : सा समासओ तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जाणिया, अजाणिया, दुव्वियड्डा। जाणिया जहा
खीरमिव जहा हंसा, जे घुटुंति इह गुरु-गुण-समिद्धा।
दोसे अ विवज्जति, तं जाणसु जाणियं परिसं॥ अर्थ--वह (परिषद्) संक्षेप में तीन प्रकार की कही गई है--ज्ञायिका, अज्ञायिका तथा : दुर्विदग्धा।
ज्ञायिका-जैसे हंस पानी को छोड़ दूध पी लेता है उसी प्रकार जहाँ श्रोताओं में गुणवान तथा गुणज्ञ व्यक्ति हो और जो दोषों का त्याग कर गुण ग्रहण कर लेते हैं उसे ज्ञायिका म परिषद् समझो।
52. In brief it has been said to be of three types----Jnayika, F Ajnayika and Durvidagdha.
Jnayika-Know this, that a Jnayika Parishad (a $i congregation of sagacious listeners) is where listeners are
virtuous as well as appreciaters of virtues; and they reject vices 55 and accept virtues just as a swan rejects water and accepts 卐 milk.
विवेचन-हंस के स्वभाव के उदाहरण से ज्ञायिका परिषद् के गुण को समझाया है। जहाँ ॐ श्रोता-समूह इतना गुण-सम्पन्न तथा विवेकी हो कि गुण और दोष में भेद कर गुण मात्र को ही स्वीकार करे और दोष को छोड देवे, वह समूह ज्ञायिका परिषद् कहा जाता है।
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कश्री नन्दीसूत्र
Shri Nandisutra 6555555555555555555hle
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