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________________ @*****56 55555 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 प्रकाशकीय मानव जीवन के लिए जो महत्त्वपूर्ण पुण्य कार्य बताये गये हैं उनमें एक महान् पुण्य कार्य है शास्त्र - सेवा अर्थात् ज्ञान का प्रचार करना । ज्ञान मनुष्य के लिए वरदान है। अन्तःकरण की आँख है। इसी के आधार पर मनुष्य अपने कृत्य - अकृत्य का, पुण्य-पाप का, भले-बुरे का बोध करता है और धर्ममार्ग में प्रवृत्त होता है । बड़े भाग्यशाली हैं वे लोग, जिन्होंने श्रुत सेवा में सतुशास्त्र के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन लगाया है। अपनी शक्ति और धन का सदुपयोग किया है और कर रहे हैं। शास्त्र का अर्थ ही है, जो हमारे अन्तःकरण को शिक्षित करे और जो हमारी भावनाओं तथा अन्तरवृत्तियों पर अनुशासन करे । इस प्रकार शास्त्र भी गुरु हैं । भगवान और गुरु के मध्य का सेतु है शास्त्र, ऐसे महान् शास्त्र का प्रचार-प्रसार करना भी महान् पुण्यशाली बनने का लक्षण है । हम सौभाग्यशाली हैं कि उत्तर भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज की कृपा से उनके विद्वान् शिष्य, प्रवचन भूषण उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज ने हमें सचित्र आगम प्रकाशन की ऐतिहासिक योजना में सहयोगी बनाया। आपश्री की प्रेरणा से अब तक छह शास्त्रों का सचित्र हिन्दी - अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रकाशन हो चुका है। प्रसन्नता की बात है कि जो लोग पहले शास्त्र स्वाध्याय नहीं करते थे, या शास्त्र के नाम से ही डरते थे कि शस्त्र और शास्त्र को छूना नहीं, अब वे लोग सचित्र आगम देखकर शास्त्रों का स्वाध्याय करने लगे हैं। बड़े चाव से पढ़ने लगे हैं। अनेक अहिन्दीभाषी विदेशों में रहने वाले विद्वान् व सामान्य जिज्ञासु भी भारत से शास्त्र मँगाकर इनका स्वाध्याय कर रहे हैं । यही हमारे लिए उत्साह का विषय है। यही हमारी योजना की सफलता की सूचना है । यद्यपि सचित्र आगम प्रकाशन का यह कार्य बहुत ही महँगा पड़ता है। चित्र, छपाई, अनुवाद आदि सभी कार्य काफी व्यय-साध्य हैं, इस कारण इनकी लागत भी काफी आती है। फिर भी हम लागत मात्र कीमत रखते हैं और साधु-साध्वियों तथा श्रीसंघ व समाज के पुस्तकालयों को तो भेंट स्वरूप ही भेज देते हैं। इसलिए इस कार्य में उदारमना सज्जनों के सहयोग की सदा अपेक्षा रहती है। हमें प्रसन्नता है कि पूज्य गुरुदेव (4) ତ 5 6 4 5 6 7 5665 5555 5 5 5 5 5 47 4 5 6 7 Jain Education International @555555555555555e For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007652
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1998
Total Pages542
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_nandisutra
File Size19 MB
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