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आठवाँ अध्ययन : मल्ली
( ४१७)
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उपसंहार
ज्ञातासूत्र की यह आठवीं कथा एक विस्तृत कथा है। इसमें भगवान मल्लीनाथ का जीवन चरित्र तो है ही साथ ही कई उपकथाएँ भी हैं। जिनमें प्रत्येक में कोई न कोई प्रेरक सन्देश छुपा है। श्रमणोपासक अर्हन्नक की कथा अडिग आस्था के महत्त्व को उजागर करती है। अपने धर्म-मार्ग पर स्थिर व्यक्ति को कोई भी शक्ति हानि नहीं पहुंचा सकती। चोक्खा परिव्राजिका की कथा भावनारहित कर्मकाण्ड की निरर्थकता को दर्शाती है। आत्मा को भव-मुक्त करना है तो आत्म-साधना के माध्यम से पापकर्मों से मुक्त होना होगा और संयम व तप से कर्ममल को धोना होगा। केवल स्नान-दानादि की औपचारिकता से मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। अर्हत् मल्ली की जीवनगाथा इस अकाट्य सत्य को प्रकट करती है कि छल-माया आदि द्वारा अर्जित कर्मों को भोगे बिना उनसे निस्तार नहीं-चाहे कोई आत्मा कितनी ही शुद्ध या शक्तिमान क्यों न हो। साथ ही यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जब आत्मा शुद्धि के पथ पर बढ़ने की तीव्र लगन से प्रेरित हो आगे बढ़ जाती है तो उसके मार्ग में कोई भी सांसारिक बात बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती चाहे वह यात्रा स्त्री के शरीर में ही क्यों न हो। ___ आध्यात्मिक शिक्षा के अतिरिक्त इस कथा में तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक जीवन शैली का रोचक व सारगर्भित विवरण भी उपलब्ध होता है।
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उपनय गाथा
उग्ग-तव-संजमवओ पगिट्ठफलसाहगस्स वि जियस्स । धम्मविसएवि सुहुमावि, होइ माया अणत्थाय ॥१॥ जह मल्लिस्स महाबलभवम्मि तित्थगरनामबंधे वि ।
तवविसय-थोवमाया जाया जुवइत्तहेउति ॥२॥ १-उग्रतप तथा संयमवान् एवं उत्कृष्ट फल के साधक जीव द्वारा की गई सूक्ष्म और धर्मविषयक माया भी अनर्थ का कारण होती है, यथा
२-मल्लीकुमारी को महाबल के भव में तीर्थंकरनामकर्म का बंध होने पर भी तप के विषय में की गई थोड़ी-सी माया भी युवतीत्व (स्त्रीत्व) का कारण बन गई।
CONCLUSION
This eighth story of Jnata Dharma Katha is an elaborate story. Besides the story of Bhagavan Mallinath it contains many other tales,
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CHAPTER-8: MALLT
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