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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
यावि होत्था। जं समयं च णं मल्ली अरहा सामाइयं चरितं पडिवन्ने तं समयं च णं मल्लिस्स अरहओ माणुसधम्माओ उत्तरिए मणपज्जवनाणे समुप्पन्ने।
सूत्र १६४. जिस समय अर्हत् मल्ली ने चारित्र अंगीकार किया उस समय शक्रेन्द्र के आदेश से देवों और मनुष्यों का कोलाहल तथा वाद्य यन्त्रों की ध्वनियाँ एकदम बन्द हो गईं। चारित्र अंगीकार के तत्काल बाद ही मल्ली अर्हत् को मनुष्य के लिये दुर्लभ और श्रेष्ठ मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हो गया। ___164. At the moment when Arhat Malli took this vow all gods and human beings became totally silent and all musical instruments were stopped on the order of Shakrendra. Immediately after Arhat Malli took the vow she acquired the Manahparyava Jnana (the ultimate parapsychological knowledge) that is rare to achieve for any human being. __सूत्र १६५. मल्ली णं अरहा जे से हेमंताणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे पोससुद्धे, तस्स णं पोससुद्धस्स एक्कारसीपक्खे णं पुव्वण्हकालसमयंसि अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं, अस्सिणीहि नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं तिहिं इत्थीसएहिं अभिंतरियाए परिसाए, तिहिं पुरिससएहिं बाहिरियाए परिसाए सद्धिं मुंडे भवित्ता पव्वइए।
सूत्र १६५. अर्हत् मल्ली ने हेमन्त ऋतु के दूसरे महीने और चौथे पक्ष में पौष शुक्ला एकादशी के दिन पूर्वाह्न के समय निर्जल उपवास करके अश्विनी नक्षत्र का योग आने पर भीतरी परिषद की तीन सौ स्त्रियों तथा बाहरी परिषद के तीन सौ पुरुषों के साथ मुंडित होकर दीक्षा ग्रहण की।
165. Arhat Malli got initiated during the second month and the fourth fortnight of the winter season. The time was before noon on the eleventh day of the bright half of the month of Paush and at that moment the moon was in its first lunar mansion, the Ashwini. Arhat Malli got initiated along with three hundred women of the inner assembly and three hundred men of the outer assembly. सुत्र १६६. मल्लिं अरहं इमे अट्ठ णायकुमारा अणुपव्वइंसु, तं जहा
णंदे य णंदिमित्ते, सुमित्त बलमित्त भाणुमित्ते य।
अमरवइ अमरसेणे महसेणे चेव अट्ठमए ॥ सूत्र १६६. अर्हत् मल्ली का अनुसरण कर ज्ञातवंश के आठ कुमार दीक्षित हुए, उनके नाम हैं-(१) नन्द, (२) नन्दिमित्र, (३) सुमित्र, (४) बलमित्र, (५) भानुमित्र, (६) अमरपति, (७) अमरसेन, और (८) महासेन।
@Amma
BADI (410)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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