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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात
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सूत्र १८. उधर प्रातःकाल होने पर श्रेणिक राजा ने कुटुम्बियों (सेवकों) को बुलाया और कहा-“हे देवानुप्रियो ! आज बाहरी सभा मंडप (उपस्थान शाला) में जल्दी ही उत्तम सुगन्धित जल छिड़को, उसकी सफाई करो और वहाँ चन्दन का लेप करो। पाँच रंग के श्रेष्ठ सुगन्धित फूलों से उसे सजाओ। तरह-तरह की सुगन्धित धूप जलाकर उसे सुवासित करो और रमणीय बनाओ। इधर-उधर सुगन्धित चूर्ण बिखराकर उसे सुगन्ध के पिटारे जैसा बना दो। ये सब काम तुम स्वयं तथा अन्यों की सहायता से पूरा कर मुझे सूचित करो।"
श्रेणिक राजा की यह आज्ञा सुन वे लोग प्रसन्न हुए और आज्ञा पालन करने चले गए। कार्य पूर्ण करके लौटे और राजा को सूचना दी।
DECORATING RAJAGRIHA ___ 18. As the dawn approached, King Shrenik summoned the members of his staff and said, “O beloved of gods! Hurry up and get the outer assembly hall cleaned, anointed and sprinkled with good fragrant water. Decorate it with enchanting, fragrant and multicoloured flowers. Burn a variety of incenses to make it redolent and pleasant. Turn it into a chamber of perfume by sprinkling aromatic powders. Do all this yourself, and with the help of others, and report back.”
Hearing the king's order they happily left and after completing the entrusted work they returned and informed the king. __ सूत्र १९. तए णं सेणिए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि, अह पंडुरे पभाए, रत्तासोगपगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागबंधुजीवग-पारावयचलण-नयण-परहुय-सुरत्तलोयण-जासुमिणकुसुम-जलियजलणतवणिज्जकलस-हिंगुलयनियर-रूवाइरेगरेहन्त-सस्सिरीए दिवागरे अहकमेण उदिए, तस्स दिणकरपरंपरावयारपारद्धम्मि अंधयारे, बालातवकुंकुमेणं खइएव्व जीवलोए, लोयणविसआणुआस-विगसंत-विसददसियम्मि लोए, कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूर सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सयणिज्जाओ उठेति।
सूत्र १९. रात बीतने पर, उषाकाल में पौ फटने पर मृग-नयनों के समान कमल की कलियाँ खिलने लगी थीं और सुनहरी आभा छिटक रही थी। लाल अशोक, टेसू, तोते की चोंच, चिर्मी का अधोभाग, रक्त पुष्प, कबूतर के पंजे व आँख, जवा कुसुम के फूलों का ढंर, धधकती अग्नि, सिंदूर, आदि के लाल रंग से भी अधिक चमकता और शोभामय सूर्य
CHUDA
CHAPTER-1 : UTKSHIPTA JNATA
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