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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता तं करयल० जाव वद्धावेइ, वद्धावित्ता पाहुडं उवणेइ, उवणित्ता “एवं खलु अहं सामी ! मिहिलाओ रायहाणीओ कुंभगस्स रण्णो पुत्तेणं पभावईए देवीए अत्तएणं मल्लदिनेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते समाणे इह हव्यमागए, तं इच्छामि णं सामी ! तुब्भं बाहुच्छाया-परिग्गहिए जाव परिवसित्तए।"
सूत्र ९५. यह सुनकर मल्लदिन्न ने उस चित्रकार के दाहिने हाथ का अंगूठा और तर्जनी कटवाकर देश से निकाल देने की आज्ञा दे दी।
दण्ड पाकर वह चित्रकार अपना सारा सामान लेकर मिथिला नगरी से प्रस्थान कर गया। विदेह जनपद से निकलकर वह कुरु जनपद में हस्तिनापुर नगर में आया। अपना सामान उचित स्थान पर रखकर उसने एक चित्र फलक तैयार किया और उस पर मल्लीकुमारी का पूर्ण चित्र बनाया। उस चित्र को अपनी बगल में दबा, राजा को भेंट देने योग्य उपहार लेकर हस्तिनापुर नगर के बीच से राजा अदीनशत्रु के दरबार में आया। उपहार राजा के सामने रख, हाथ जोड़कर राजा का अभिनन्दन करके वह बोला“स्वामी ! मिथिला नगर के राजा कुंभ के पुत्र युवराज मल्लदिन्न ने मुझे देश से निर्वासित कर दिया तो मैं सीधा यहाँ आ गया हूँ। अब मैं आपकी बाहुओं की छत्रछाया में सुरक्षित हो यहाँ बसना चाहता हूँ।" EXILED PAINTER
95. Malladinna considered their request and reduced the sentence of the artist to deportation after amputating the thumb and index finger of his right hand.
After his punishment the artist collected his belongings and left Mithila. Leaving Videh he came to Hastinapur in Kuru. He found a proper place to stay and preparing a canvas he made a portrait of Princess Malli. He took this portrait with him, collected some suitable gifts, and went to the court of King Adinshatru. After placing the gifts before the king and greeting him the artist said, “Sire ! Prince Malladinna, son of King Kumbh of Mithila has exiled me. I have come here to settle under your esteemed protection."
सूत्र ९६. तए णं से अदीणसत्तू राया तं चित्तगरदारयं एवं वयासी-"किं णं तुम देवाणुप्पिया ! मल्लदिन्नेणं निव्विसए आणत्ते ?"
सूत्र ९६. राजा ने चित्रकार से पूछा-“देवानुप्रिय ! कुमार मल्लदिन्न ने तुम्हें देशनिर्वासन की आज्ञा किस कारण दी ?"
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INATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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