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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ६९. राजा ने उनकी दिव्य कुण्डल जोड़ी की भेंट स्वीकार की और कहा-“हे देवानुप्रियो ! आप अनेक ग्रामादि में भ्रमण करते हैं तथा बार-बार समुद्र यात्रा पर जाते हैं। हमें बताओ कि कहीं आपने कोई आश्चर्य भी देखा है क्या?"
69. The king accepted the gifts and said, “Beloved of gods! You have done many sea voyages and visited numerous villages, cities etc. ; tell me if you have come across some wonder somewhere?”
सूत्र ७0. तए णं ते अरहन्नगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी-“एवं खलु सामी ! अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्तगा णावावाणियगा परिवसामो, तए णं अम्हे अन्नया कयाइं गणिमं च धरिमं च सेज्जं च परिच्छेजं च तहेव अहीणमतिरित्तं जाव कुंभगस्स रण्णो उवणेमो। ___ तए णं से कुंभए मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता, पडिविसज्जेइ। तं एस णं सामी ! अम्हेहिं कुंभरायभवणंसि मल्ली विदेहरायवरकन्ना अच्छेरए दिढे तं नो खलु अन्ना का वि तारिसिया देवकन्ना वा जाव जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना।।
सूत्र ७०. वणिकों ने अंगराज चंद्रच्छाय को उत्तर दिया-“हे स्वामी ! हम सब नौकावणिक् इसी चम्पानगरी के रहने वाले हैं। एक बार हम अपना माल भरकर यात्रा करते हुए मिथिला के राजा कुम्भ के पास गये। उन्हें भेंट समर्पित करके बैठे तो उन्होंने उसमें से दिव्य कुण्डल निकालकर अपनी कन्या मल्लीकुमारी को पहना कर उसे वापस भेजा। हे स्वामी ! हमें राजा कुम्भ के भवन में उनकी पुत्री मल्लीकुमारी एक आश्चर्य के रूप में दिखाई दी। उसके जैसी सुन्दरी समस्त त्रिभुवन की कन्याओं में नहीं है।"
70. The merchants replied to the king of Anga, “Sire! We seafarers are inhabitants of this Champa city. Traveling once with our merchandise we arrived in Mithila city and visited King Kumbh. When we took our seats after presenting the gifts to the king, he picked up the divine earrings and gave them to his daughter Princess Malli to wear. Sire! In that palace of King Kumbh Princess Malli was a wonder. She has no parallel in beauty in the whole universe."
सूत्र ७१. तए णं चंदच्छाए ते अरहन्नगपामोक्खे सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता, सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ। तए णं चंदच्छाए वाणियगजणियहासे दूतं सद्दावेइ, जाव जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूते हढे जाव पहारेत्थ गमणाए।
BHARO
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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