________________
( ३५८)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
ORAO Swa
ORD
SANT MEDERED
अणुपविसंति, अणुपविसित्ता जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कटु तं महत्थं दिव्वं कुंडलजुयलं उवणेति जाव पुरओ ठवेंति।
सूत्र ६६. उपसर्ग के समाप्त हो जाने पर अर्हन्नक ने अपना कायोत्सर्ग सम्पन्न किया। पवन के दक्षिणमुखी होने के कारण उनकी नाव गम्भीर नाम के बन्दरगाह पर पहुंची। नाव के रुकने पर अर्हन्नक तथा अन्य व्यापारियों ने गाड़ियाँ तैयार कर उनमें माल भरा और घोड़े जोतकर रवाना हो गये। वहाँ से वे मिथिला नगरी पहुंचे और नगर के बाहर श्रेष्ठ उद्यान में अपनी गाड़ियाँ खड़ी कर दी। फिर वे राजा के लिये बहुमूल्य तथा महान व्यक्तियों को भेंट करने योग्य सामग्री तथा कुंडलों की वह दिव्य जोड़ी साथ में लेकर मिथिला नगरी के भीतर आये। कुम्भ राजा के दरबार में पहुँच दोनों हाथ जोड़ अभिनन्दन किया और भेंट सामग्री तथा कुंडल राजा के सामने रख दिये।
66. Arhannak concluded his meditation as soon as the affliction was over. When the wind started blowing from the south their ship reached the Gambhir port. After the ship docked, Arhannak and the other merchants prepared their carts and loaded their merchandise. Harnessing the horses they left the port. They came to Mithila city and parked their carts in the beautiful garden outside the city. They selected valuable and suitable gifts as well as a pair of the divine earrings and entered the town. Arriving at the court of King Kumbh they greeted him and placed the gifts and the earrings before him. __सूत्र ६७. तए णं कुंभए राया तेसिं संजत्तगाणं नावावाणियगाणं जाव पडिच्छइ, पडिच्छित्ता मल्लिं विदेहवररायकन्नं सद्दावेइ, सद्दावित्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं मल्लीए विदेहवररायकनगाए पिणद्धइ, पिणद्धित्ता पडिविसज्जेइ।
तए णं से कुंभए राया ते अरहन्नगपामोक्खे जाव वाणियगे विपुलेणं असण-पाणखाइम-साइमेण वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं जाव उस्सुक्कं वियरेइ, वियरित्ता रायमग्गमोगाढे य आवासे वियरइ, वियरित्ता पडिविसज्जेइ। ___ सूत्र ६७. कुंभ राजा ने उन नौका वणिकों द्वारा दी बहुमूल्य भेंट सामग्री स्वीकार की
और मल्लीकुमारी को बुलवाया। वे दिव्य कुंडल उन्होंने कुमारी को पहनाए और वापस भेज दिया।
फिर कुम्भ राजा ने अर्हन्नक आदि यात्रियों का प्रचुर आहार सामग्री तथा वस्त्रालंकार प्रदान कर सत्कार किया। राजा ने उनका शुल्क भी माफ कर दिया और राजमार्ग पर ठहरने का स्थान प्रदान कर विदा किया।
SMS RAMA TOR
-
/
(358)
JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org