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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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जाना
सूत्र ५८. तं तालपिसायरूवं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता भीया संजायभया अन्नमन्नस्स कायं समतुरंगेमाणा बहूणं इंदाण य खंदाण य रुद्द-सिव-वेसमण-णागाण भूयाण य जक्खाण य अज्जकोट्ट-किरियाण य बहूणि उवाइयसयाणि ओवाइयमाणा ओवाइयमाणा चिट्ठति।
सूत्र ५८. अर्हन्नक के अतिरिक्त अन्य सभी वणिक् इस तालपिशाच की आकृति को नाव की तरफ आता देखकर डर से एक-दूसरे से लिपट गये और अपने-अपने इष्ट देवोंइन्द्र, स्कन्द, रुद्र, शिव, वैश्रमण, नाग, भूत, यक्ष, दुर्गा, चण्डी आदि को बारंबार पुकारकर मनौती मनाने लगे।
58. Seeing this Pine-demon approach the ship, all the merchants except Arhannak huddled together with fear and remembered and repeated the names of their individual deities like Indra, Skanda, Rudra, Shiva, Vaishraman, Naag, Bhoot, Yaksha, Durga, Chandi, etc. for help. ___ सूत्र ५९. तए णं से अरहन्नए समणोवासए तं दिव्यं पिसायरूवं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता अभीए अतत्थे अचलिए असंभंते अणाउले अणुव्विग्गे अभिण्णमुहरागणयणवण्णे अदीणविमणमाणसे पोयवहणस्स एगदेसंमि वत्थंतेणं भूमि पमज्जइ पमज्जित्ता ठाणं ठाइ, ठाइत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी
"नमोऽत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव ठाणं संपत्ताणं, जइ णं अहं एत्तो उवसग्गाओ मुंचामि तो मे कप्पइ पारित्तए, अह णं एत्तो उवसग्गाओ ण मुंचामि तो मे तहा पच्चक्खाएयव्वे" त्ति कटु सागारं भत्तं पच्चक्खाइ।
सूत्र ५९. श्रमणोपासक अर्हन्त्रक ने उस दिव्य पिशाच आकृति को अपनी ओर आते देखा। उसे देख अर्हन्नक तनिक भी भयभीत नहीं हुआ। उसके मन में त्रास, चंचलता, भ्रान्ति, व्याकुलता और उद्विग्नता उत्पन्न नहीं हुए। न तो उसके चेहरे का भाव बदला और न आँखों का रंग। हीनता और खिन्नता उससे दूर रही। वह नाव के एक भाग में जा कपड़े के छोर से बैठने के स्थान को साफ करके बैठ गया और दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा-"नमोत्थुणं अरहताणं ..... अरिहंत भगवान को मेरा नमस्कार है" (शक्र स्तव का पाठ)। यदि मैं इस उपसर्ग से मुक्त हो जाऊँ तो मैं अपने इस कायोत्सर्ग को भंग करूँगा
और यदि इस उपसर्ग से मुक्त न हो सकूँ तो इस कायोत्सर्ग को भंग नहीं करूँगा।" ऐसा कहकर उसने सागारी अनशन का संकल्प ले लिया।
QAMINA
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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