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सूत्र ३. तत्थ णं सलिलावतीविजए वीयसोगा नामं रायहाणी पण्णत्तानवजोयणवित्थिन्ना जाव पच्चक्खं देवलोगभूया ।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं इंदकुंभे नामं उज्जाणे होत्था ।
तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले नामं राया होत्था । तस्स धारिणीपामोक्खं देविहस्सं उवरोधे होत्था ।
सूत्र ३ सलिलावती विजय की राजधानी वीतशोका नगरी थी। वह नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी थी और साक्षात् देवलोक के समान थी ।
वीतशोका के उत्तर-पूर्व में इन्द्रकुम्भ नाम का उद्यान था ।
वहाँ के राजा का नाम बल था जिसके एक हजार रानियाँ थीं और उनमें धारिणी प्रमुख थी।
3. The capital of Salilavati Vijaya was the city of Veetshoka. It was twelve yojan (an ancient measure of distance) long and nine yojan wide and looked like a heavenly town.
There was a garden named Indrakumbh to the north-east of the city.
The name of the ruler of that city was Bal. He had one thousand consorts lead by queen Dharini.
महाबल का जन्म
सूत्र ४. तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव महब्बले नामं दारए जाए, उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे । तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरीपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्नासयाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेंति । पंच पासायसया पंचसओ दाओ जाव विहरइ ।
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सूत्र ४. धारिणी देवी एक बार स्वप्न में सिंह को देखकर जाग पड़ी थी । स्वप्न के शुभ फल के रूप में यथासमय उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम महाबल रखा गया । यह बालक जब युवा हुआ तो उसका विवाह एक साथ पाँच सौ सुन्दर व श्रेष्ठ कुल की राजकुमारियों से कर दिया गया जिनमें कमल श्री प्रमुख थी । विवाह के बाद महाबल को पाँच सौ महल और प्रत्येक महल के साथ प्रचुर धन दिया गया। महाबल मनुष्योचित कामभोग भोगता जीवन व्यतीत करने लगा।
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