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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
जिनकी खिड़कियों की जाली में से यह कमरा दिखाई देता था। इस कमरे के मध्य में मल्लीकुमारी ने अपनी अनुकृति की एक सोने की पुतली बनवाकर स्थापित करवाई। यह मूर्ति खोखली थी और इसके सर पर एक ढकना बना हुआ था। मल्लीकुमारी प्रतिदिन भोजन के समय एक ग्रास भोजन इस मूर्ति में डालती रहती थीं। ___ उधर उन छहों राजाओं को भिन्न-भिन्न माध्यमों से मल्लीकुमारी के सौन्दर्य के समाचार मिले। कौशलराज प्रतिबुद्ध को उनके अमात्य सुबुद्धि ने बताया। अंगराज चन्द्रच्छाय को श्रमणोपासक व्यापारी अर्हन्नक ने, कुणालपति रुक्मि को उनके अंगरक्षक ने, काशीराज शंख को मिथिला से निष्कासित सुनारों ने, कुम्भराज अदीनशत्रु से मल्लदिन द्वारा निष्कासित चित्रकार ने और पांचाल नरेश जितशत्रु को चोक्खा परिव्राजिका ने बताया। ये छहों राजा मल्लीकुमारी का रूप-वर्णन सुन कर उन पर अनुरक्त हो गये और अपने दूतों के साथ विवाह प्रस्ताव भिजवाया।
राजा कुम्भ के पास ये दूत एक साथ ही विवाह प्रस्तावों सहित पहुँचे। कुम्भ ने ये प्रस्ताव सुन क्रोधित हो प्रस्ताव ठुकरा दिए और दूतों को लौटा दिया। दूतों ने अपने स्वामियों को सूचना दी कि कुम्भ ने प्रस्ताव ठुकराकर उन्हें अपमानित कर दिया है। छहों राजाओं ने परस्पर मंत्रणा की और एक साथ मिथिला पर चढ़ाई कर दी। राजा कुम्भ उनका सामना करने विदेह राज्य की सीमा पर पहुँचे तो इस संयुक्त सेना के सामने टिक नहीं सके। हारकर वे नगर के भीतर भाग आये और द्वार बन्दकर सुरक्षा हेतु चिन्ता करने लगे। आक्रमणकारी राजाओं की सेनाओं ने मिथिला पर घेरा डाल दिया।
पिता की चिन्ता देख मल्लीकुमारी ने उन्हें उपाय बताया। उन्होंने कहा कि छहों राजाओं को एक ही प्रस्ताव गोपनीय तरीके से भिजवा दिया जाय कि कुमारी का विवाह उससे ही कराया जायेगा। अतः वह संध्या समय अकेला मिथिला में आ जावे। इन राजाओं को अलग-अलग मोहन-भवन में भेज बाहरी छह कमरों में अलग-अलग रखा जाय। __मल्लीकुमारी की योजनानुसार राजा कुम्भ ने सभी कार्य कर दिये। राजाओं ने मोहन-घर के अपने-अपने कमरे से मध्य में रही सुन्दर प्रतिमा को देखा तो उसे मल्लीकुमारी समझकर मोहित हो गये
और विवाह की मधुर कल्पनाओं में डूब गये। प्रातःकाल मल्लीकुमारी अपनी परिचारिकाओं के साथ मोहन-गृह में आईं और मूर्ति के सर पर से ढकना हटा दिया। तत्काल सारे वातावरण में तीव्र दुर्गन्ध व्याप्त हो गई। सभी राजा उस दुर्गन्ध से तिलमिला उठे। तब मल्लीकुमारी ने उन्हें इस दुर्गन्धमय पार्थिव शरीर पर अनुरक्त न होने का प्रतिबोध दिया और अपने पूर्व-भव की कथा सुनाई। राजाओं को जाति-स्मरण ज्ञान हुआ और उन्होंने मल्लीकुमारी के साथ ही दीक्षित होने का निश्चय कर लिया।
कालान्तर में अर्हत मल्ली ने परम्परानुसार गृह त्यागकर यथाविधि दीक्षा ली। उन्हें तत्काल मनःपर्यवज्ञान और उसी दिन केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। दीर्घकाल तक धर्म प्रतिपादन कर उन्होंने सम्मेत शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA
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