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________________ (308) रक्षकाः गृह-संरक्षिका सूत्र २०. एवं रक्खिया वि। नवरं जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता मंजू विहाडे, विहाडित्ता रयणकरंडगाओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव धणे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंच सालिअक्खए धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थे दलय | सूत्र २०. धन्य सार्थवाह ने रक्षिका से जब उसी प्रकार प्रश्न किया तो वह अपने कमरे में गई और गहनों की पेटी खोल उसमें सँभालकर रखे पाँचों दाने निकाले । धन्य सार्थवाह के पास आकर उसने वे दाने उसके हाथ में रख दिये। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र RAKSHIKA: THE PROTECTOR 20. When Dhanya Merchant asked the same question to Rakshika, she went into her room and took out the five grains kept safely in her jewellery box. She returned to Dhanya Merchant and put the grains in his hand. सूत्र २१. तए णं से धण्णे सत्थवाहे रक्खियं एवं वयासी - " किं णं पुत्ता ! ते चेव एए पंच सालिअक्खए, उदाहु अण्णे ? " त्ति । तए णं रक्खिया धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी - " ते चेव ताया ! एए पंच सालि अक्खया, णो अन्ने।" "कहं णं पुत्ता ?" "एवं खलु ताओ ! तुब्भे इओ पंचमम्मि संवच्छरे जाव भवियव्वं एत्थ कारणेणं ति कट्टु ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे जाव तिसंझं पडिजागरमाणी यावि विहरामि । तओ एए णं कारणं ताओ ! ते चेव एए पंच सालिअक्खए, णो अन्ने । " Jain Education International तणं से धणे सत्थवाहे रक्खियाए अंतिए एयमट्ठे सोच्चा हट्टतुट्ठे कुलघरस्स हिरन्नस्स य कंस-दूस - विपुलधण जाव सावतेज्जस्स य भंडागारिणिं ठवे । सूत्र २१. धन्य सार्थवाह ने पूछा - "पुत्री ! क्या ये वही पाँच दाने हैं ?" रक्षिका - "जी हाँ, तात ! ये वही पाँचों दाने हैं, दूसरे नहीं । " धन्य - "वह कैसे ?" रक्षिका - "तात ! पाँच वर्ष पूर्व जब आपने ये पाँच दाने दिये थे तब मैंने विचार किया कि इसमें सममुच ही कोई विशेष कारण होना चाहिये। इसलिये मैंने इन्हें शुद्ध वस्त्र में ( 304 ) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA For Private Personal Use Only ONIO www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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