________________
( ३०२)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
yo
सूत्र १५. उज्झिका ने उत्तर दिया-“हे तात ! आपने पाँच वर्ष पहले इन्हीं लोगों के सामने पाँच दाने देकर कहा था कि इनका संरक्षण, संगोपन व संवर्धन करना। मैंने आपकी बात मानकर पाँच दाने लिये और एकान्त में जाकर विचार किया कि आपके भण्डार में ढेर सारे चावल भरे हैं, जब चाहे तब उनमें से दे दूंगी और मैंने वे दाने फेंक दिये। अतः हे तात ! ये दूसरे दाने हैं, वे नहीं।" ____15. Ujjhika replied, “Papa! Five years back, in presence of these same guests, you had given me five grains of rice with instructions to store, preserve, and multiply them. I heard your instructions and took the grains and when I was alone I thought that your godown is full of grains, whenever you demand I shall take out five grains from the godown and give them back to you. As such, I threw away the five grains you gave. So, Papa, these are other grains not the original ones.”
सूत्र १६. तए णं से धण्णे उज्झियाए अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म आसुरत्ते जाव मिसिमिसेमाणे उज्झिइयं तस्स मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंध-परियणस्स चउण्ह सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तस्स कुलघरस्स छारुज्झियं च छाणुज्झियं च कयवरुज्झियं च संपुच्छियं च सम्मज्जिअं च पाउवदाइयं च ण्हाणावदाइयं च बाहिरपेसणकारिं च ठवेइ। __सूत्र १६. उज्झिका की यह बात सुनकर धन्य सार्थवाह क्रुद्ध हो गये और तिलमिला उठे। उन्होंने उज्झिका को उन सभी स्वजनों के सामने कुल-गृह की राख फेंकने वाली, उपले थापने वाली, झाडू लगाने वाली, पैर धोने का पानी देने वाली, स्नान के लिये पानी देने वाली तथा अन्य ऊपर के दासी योग्य कार्य करने वाली के रूप में नियुक्त किया। ___16. Hearing all this Dhanya Merchant lost his temper. In presence of all those guests he appointed Ujjhika as house-hold in-charge of deprecatory duties like throwing ash, preparing cow-dung cakes, sweeping and cleaning the house, arranging for water to wash and bathe and other such manual work.
सूत्र १७. एवामेव समणाउसो ! जो अहं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वइए पंच य से महव्वयाई उज्झियाई भवंति, से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं हीलणिज्जे जाव अणुपरियट्टिस्सइ। जहा सा उज्झिया।
सूत्र १७. इसी प्रकार हे आयुष्मानो ! जो साधु-साध्वी दीक्षा लेकर पाँच महाव्रतरूपी अक्षत के दानों को फेंक देता है वह उज्झिका के समान इस भव में चतुर्विध संघ की अवहेलना का पात्र बनता है और संसार चक्र में घूमता रहता है।
(302)
JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org