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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सुण्हाणं कुलघरवग्गं जाव सम्माणित्ता तस्सेव मित्तणाइ. चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ जेटं उज्झियं सद्दावेइ। सद्दावित्ता एवं वयासी
सूत्र १२. जब पाँचवाँ वर्ष चल रहा था तब धन्य सार्थवाह को एक दिन अर्द्ध-रात्रि के समय मन में विचार उठा-“पाँच वर्ष पहले चारों पुत्र-वधुओं को मैंने पाँच-पाँच दाने चावल के उनकी परीक्षा लेने हेतु दिये थे। अच्छा होगा कि कल सुबह उनसे वे पाँच-पाँच दाने वापस माँगूं और देखू कि किसने, किस प्रकार उनका संरक्षण, संगोपन और संवर्धन किया है ?" दूसरे दिन उसने पूर्ववत् भोज का प्रबन्ध किया और स्वजनों तथा पुत्र-वधुओं के पीहर वालों को निमन्त्रण दिया। भोज के बाद सब अतिथियों के सामने उसने सबसे पहले ज्येष्ठ पुत्र-वधू को बुलाकर कहाRESULT OF THE TEST
12. When the fifth year after the giving of the rice grains was running, one day at midnight Dhanya Merchant thought, “Five years earlier I had given five grains of rice each to my four daughters-in-law to test their virtues. Tomorrow morning I should ask them to return those grains and see how have they stored, preserved, or multiplied them?" Next day he made arrangements for a feast, as he had done earlier, and invited his friends as well as the parents and relatives of the four daughters-in-law. After the feast and in presence of all the guests he called the eldest daughter-in-law and said,
सूत्र १३. “एवं खलु अहं पुत्ता ! इओ अईए पंचमंसि संवच्छरंसि इमस्स मित्तणाइ. चउण्ह सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तव हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयामि, जया णं अहं पुत्ता ! एए पंच सालिअक्खए जाएज्जा तया णं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिनिज्जाएसि ति कट्ठ तं हत्थंसि दलयामि, ते नूणं पुत्ता ! अढे समढे ?"
"हंता, अत्थि।" "तं णं पुत्ता ! मम ते सालिअक्खए पडिनिज्जाएहि।"
सूत्र १३. “हे पुत्री ! आज से पाँच वर्ष पूर्व इन्हीं स्वजनों के सामने मैंने तुम्हें पाँच चावल दिये थे और कहा था कि जब मैं ये पाँच दाने माँगें तब तुम उन्हें मुझे वापस देना। मैं ठीक कह रहा हूँ ?"
उज्झिका-"जी हाँ, आप ठीक कह रहे हैं।" धन्य-"तो हे पुत्री ! मेरे वह चावल वापस दो।"
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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