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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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का भोग करो। मैं वायुकाय को तुम्हारे ऊपर से जाने से नहीं रोक सकता शेष जो भी कष्ट या पीड़ा तुम्हें होगी उस सबका मैं निवारण करूँगा।" TEST BY KRISHNA-THAVACCHAPUTRA
14. Riding his great elephant Vijay and accompanied by his guards Krishna Vasudev arrived at the house of Thavaccha and asked Thavacchaputra, “Beloved of gods! Please don't shave your head and become an ascetic. Come under my protection and enjoy all the pleasures of worldly life. I cannot stop the movement of air around you, except this I will ensure that you are not plagued by any pain or misery."
सूत्र १५. तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेव एवं वयासी-"जइ णं तुमं देवाणुप्पिया ! मम जीवियंतकरणं मच्चं एज्जमाणं निवारेसि, चरं वा सरीररूव-विणासिणिं सरीरं अइवयमाणिं निवारेसिं, तए णं अहं तव बाहुच्छायापरिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि।" ___ सूत्र १५. थावच्चापुत्र ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! आप मेरे जीवन का अन्त करने वाली मृत्यू से मेरी रक्षा कर सकें और शरीर को जर्जर कर उसके सौन्दर्य का नाश करने वाले बुढ़ापे से मुझे दूर रख सकें तो अवश्य ही आपके संरक्षण में रहकर मानवोचित आनन्द का भोग करने को तैयार हूँ।" ___15. Thavacchaputra said, “Beloved of gods! If it is possible for you to protect me from death that terminates life and keep me untouched by old age that turns the body frail and destroys its beauty, I am certainly prepared to come under your protection and enjoy all the pleasures of worldly life.”
सूत्र १६. तए णं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे थावच्चापुत्तं एवं वयासी-“एए णं देवाणुप्पिया ! दुरइक्कमणिज्जा, णो खलु सक्का सुबलिएणावि देवेण वा दाणवेण वा णिवारित्तए णन्नत्थ अप्पणो कम्मक्खए णं।" __ सूत्र १६. इस पर कृष्ण वासुदेव ने कहा-“हे देवानुप्रिय ! जरा और मरण का उल्लंघन महान् बलशाली देव अथवा दानव भी नहीं कर सकते। स्वयं अपने द्वारा उपार्जित पूर्व-कर्मों का क्षय ही इन्हें बाधित कर सकता है।"
16. At this, Krishna Vasudev said, “Beloved of gods! Even the most powerful gods or demons cannot overcome aging and death. They can only be countered by shedding the acquired Karmas."
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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