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________________ (२३०) aor - - VANAL पंचम अध्ययन : शैलक: आमुख शीर्षक-सेलए-शैलक-नाम विशेष। शैलकपुर नाम के नगर का राजा जो वैराग्य से प्रेरित हो सवच्चा पुत्र का शिष्य बना। उनके श्रमण जीवन में भौतिक सुविधाओं के कारण शैथिल्य आ गया था। शिथिलाचार से पुनः संयम की ओर मुड़ने के महत्त्व को इस कथा से समझाया गया है। ___ कथासार-द्वारका नगरी में कृष्ण वासुदेव का राज्य था। वहाँ थावच्चा नाम की धनाढ्य महिला पुत्र सहित रहती थी। भगवान नेमिनाथ के एकदा द्वारका आने पर थावच्चा-पुत्र उनकी देशना से प्रभावित हुआ और उनके पास दीक्षा लेने का निश्चय किया। माता तथा कृष्ण वासुदेव के समझाने पर भी वह | अपने निश्चय से डिगा नहीं और भगवान नेमिनाथ से दीक्षा ग्रहण कर ली। थावच्चा-पुत्र द्वारका से निकल अनेक स्थानों पर विहार करते शैलकपुर नगर में आये। वहाँ का राजा शैलक तथा उसके मंत्री सभी थावच्चा-पुत्र के उद्बोधन से प्रभावित हो व्रतधारी श्रावक बन गये। उसी काल में सौगंधिका नाम की नगरी में सुदर्शन नामक एक सेठ रहता था। सांख्य दर्शन में | निष्णात शुक नाम के एक परिव्राजक का उपदेश सुन सुदर्शन ने शुक परिव्राजक का शौच मूलक मत अंगीकार कर लिया। इसके बाद उस नगरी में थावच्चा-पुत्र भी विहार करते-करते पधारे। उनके उपदेश सुनकर तथा उनसे चर्चा करके सुदर्शन सेठ ने अपना मत त्याग विनयमूलक श्रमण धर्म स्वीकार कर लिया। ___ कालक्रम से शुक परिव्राजक पुनः सौगंधिका आया और उसने जब जाना कि सुदर्शन ने श्रमण धर्म स्वीकार कर लिया है, वह उसे साथ ले थावच्चा-पुत्र के पास गया। उनसे प्रश्न पूछे। जिज्ञासा शांत होने पर वह थावच्चा-पुत्र के पास दीक्षित हो गया। शुक परिव्राजक ने अपने गुरु के पास शिक्षा प्राप्त कर घरम ज्ञान प्राप्त कर लिया। थावच्चा-पुत्र समाधिमरणपूर्वक मोक्ष गये। शुक अपने शिष्यों सहित शैलकपुर आया और उसकी देशना सुन शैलक राजा को वैराग्य हो आया। इन्होंने अपने पाँच सौ मंत्रियों सहित शुक के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। शुक मुनि अपने एक हजार साधु | शिष्यों सहित अन्तिम समाधि के लिए शत्रुजय पर्वत पर चले गये। शैलक मुनि को श्रमणों का कठोर जीवन रास नहीं आया और वे क्षीण तथा रोगी हो गये। एक बार जब वे शैलकपुर आये तो उनके पुत्र ने उनकी दशा देख उन्हें अपनी वाहनशाला में आ ठहरने का आग्रह किया और वहाँ आने पर उनके उपचार की व्यवस्था तथा अन्य सभी सुविधायें जुटा दीं। यहाँ शिलक मुनि का स्वास्थ्य तो सुधरा पर उनकी उन सभी उपलब्ध सुविधाओं पर आसक्ति हो गई। वे प्रमादी बन गये और वहाँ से विहार करने की सोचना भी बन्द कर दिया। इस पर उनके शिष्य साधुओं में पंथक मुनि को उनकी सेवा में छोड़ वहाँ से प्रस्थान कर दिया। __ एक बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन संध्या के समय जब शैलक मुनि सो रहे थे तब पंथक ने प्रतिक्रमण के पश्चात् उनसे क्षमा याचना हेतु उनके चरणों का अपने सिर से स्पर्श किया। शैलक मुनि A (230) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007650
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1996
Total Pages492
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_gyatadharmkatha
File Size13 MB
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