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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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नीणियं पासंति। पासित्ता ताए उक्किट्ठाए गईए सिग्धं चवलं तुरियं चंडं जइणं वेगिई जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति। उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नखेहि आलुपंति दंतेहिं अक्खोडेंति, तओ पच्छा मंसं च सोणियं च आहारेंति, आहारित्ता त कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाइंति करेत्तए, ताहे दोच्चं पि अवक्कमंति, एवं चत्तारि वि पाया जाव सणियं सणियं गीवं णीणेइ। तए णं ते पावसियालया तेणं कुम्मए णं गीवं णीणियं पासंति, पासित्ता सिग्धं चवलं तुरियं चंड नहेहिं दंतहिं कवालं विहाडेंति, विहाडित्ता तं कुम्मगं जीवियाओ ववरोति, ववरोवित्ता मंसं च सोणियं च आहारेंति। - सूत्र ८. दोनों में से एक कछुए ने जब देखा कि सियारों को गये कुछ देर हो चुकी है तो उसने धीरे-धीरे अपना एक पैर शरीर के बाहर निकाला। दुष्ट सियार यह सब देख रहे थे। वे तत्काल तीव्र, शीघ्र, चपल और त्वरित गति से, प्रखरता और वेग से उस कछुए पर झपट पड़े। नाखूनों से उसके पैर को फाड़ा और दाँतों से तोड़ लिया। उस पैर का रक्त-माँस खा लेने के बाद उन्होंने फिर कछुए के शरीर को पहले की भाँति चीरने-फाड़ने की चेष्टा की, पर वे फिर असफल रहे। इस पर वे फिर पहले की तरह जा छिपे। कछुए ने कुछ देर बाद दूसरा पैर निकाला और सियारों ने वह भी पहले की तरह ही खा डाला। इसी प्रकार एक के बाद एक वे उसके चारों पैर खा गये और अन्त में उसकी गर्दन तोड़कर कपाल को शरीर से अलग कर दिया। कछुए के मृत हो जाने पर उन्होंने उसके पूरे माँस व रक्त का भक्षण कर लिया।
THE RASH TURTLE
8. When one of the turtles observed that sometime had passed since the jackals had left the place, it slowly pushed out one of its limbs. The evil jackals were furtively observing all this. They at once pounced on the turtle with great speed and force. They tore at the exposed limb of the turtle with their paws and broke it apart with their jaws. After eating the flesh and licking the bones clean they again attacked the body of the turtle but failed to do anything. They returned to their hiding place and started their watch again. The turtle brought out another of its limbs after some time and the jackals pounced again, This way, one after the other, they consumed all the four limbs of the turtle and at last tore apart its neck. Once the turtle was dead the jackals devoured all its flesh and blood.
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA
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