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इस भव से तीसरे पूर्व भव में मेघकुमार ने हाथी के रूप में जन्म लिया था। भयंकर दावानल से त्रसित अपनी प्यास बुझाने वह गजराज तालाब में उतरा तो उसमें रहे दलदल में फँस गया। ऐसी स्थिति में उसे एक तरुण शत्रु हाथी ने अपने पैने दाँतों से छेद दिया । मृत्यु पश्चात् वह जीव पुनः एक- गजराज के रूप में जन्मा । एक बार दावानल को देख उसे पूर्व जन्म के अनुभव का आभास हुआ और उसने अपने दल सहित नदी के तट पर एक विशाल क्षेत्र को वृक्ष व घास-फूस आदि जलने वाले पदार्थों से विहीन कर सुरक्षित मंडल तैयार कर लिया।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
एक बार जब पुनः भीषण दावानल प्रज्वलित हुआ तो भयभीत गजराज अपने दल सहित उस क्षेत्र की ओर भागा। वहाँ पहले से ही भयभीत वन-चर ठसाठस भरे पड़े थे। गजराज भी जैसे-तैसे उस भीड़ में घुसा और जहाँ स्थान पाया वहीं खड़ा हो गया। कुछ देर बाद उसने शरीर खुजाने को अपना एक पैर उठाया तो उस स्थान पर एक भयभीत खरगोश दुबक गया। गजराज ने यह देखा तो उसके हृदय में करुणा / अनुकम्पा का भाव उमड़ पड़ा। अनुकम्पावश उसने अपना पैर उठाये ही रखा। वह दावानल अढाई दिन में शांत हुआ और तब सारे पशु उस सुरक्षित स्थान से बाहर चलें गये । गजराज ने भी वहाँ से प्रस्थान के लिये जब अपने उठे हुए पैर को धरती पर टिकाने की चेष्टा की तो थकान और जकड़न के मारे वह धरती पर गिर पड़ा। तीन दिन तक असह्य वेदना भोगने के पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त हुआ । करुणा से पवित्र हुई शुद्ध भावनाओं द्वारा जो कर्म बन्धन हुआ उसके फलस्वरूप वह जीव मेघकुमार के रूप में जन्मा ।
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पूर्व जन्मों की यह कथा सुनाकर भगवान ने मेघकुमार से कहा कि जब पशु के रूप में करुणा से प्रेरित हो एक नन्हे-से खरगोश की असुविधा का भी ध्यान रखने की सामर्थ्य उभरी थी तो आज क्या हुआ है? ज्ञानवान, बुद्धिमान् तथा गुणवान मनुष्य रूप में भी क्या श्रमणों द्वारा प्राप्त तनिक सी असुविधा से विचलित हो जाना उसे शोभा देता है? सज्ञान तितिक्षा से कर्म निर्जरा करना महान फलदायी होता है।
प्रभु के इस उलाहने ने मेघकुमार की आँखें खोल दीं। उसे पश्चात्ताप हुआ और अतीत के ऊहापोह में लीन उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । पूर्व-भव की सभी बातें चलचित्र की भाँति स्पष्ट हो गईं। उसने अपने आपको संयम में स्थिर किया तथा यह व्रत लिया कि अपने नेत्रों के अतिरिक्त समस्त शरीर को श्रमणों की सेवा में अर्पित कर देगा। इसके बाद मेघकुमार ने सभी अंग-शास्त्रों का अध्ययन किया की आयु पूर्ण कर और तीव्र तपस्या करते हुए आयुष्य पूर्ण कर अनुत्तर देव लोक में जन्म लिया। वहाँ महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर वह जीव मोक्ष प्राप्त करेगा।
FIRST CHAPTER: UTKSHIPTA JNATA: INTRODUCTION
Title-Utkshipta Jnata or "the tale of the elevated". The word Utkshipta means elevated or raised. It indicates a condition where a thing rises from its normal state to a higher state and remains there. The context may be physical, mental or spiritual. This story includes this elevated state in all these three contexts and the
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JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA
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