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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
SATTA
MEDIAS
सूत्र ३५. धन्य सर्थवाह को आता देखकर नगर के अनेक आत्मीय, श्रेष्ठी, सार्थवाह आदि जनों ने उसका आदर किया, स्वागत-सत्कार किया, सम्मान किया और खड़े होकर क्षेम-कुशल पूछी।
धन्य सार्थवाह फिर अपने घर पहुँचा। बाहरी आँगन में खड़े दास, नौकर-चाकर, भृत्य, पालती आदि ने उन्हें आया देख पैरों में गिरकर क्षेम-कुशल पूछी।
भीतरी आँगन में माता, पिता, भाई, बहन आदि परिवार-जन धन्य को आया देख आसन से उठे और उन्हें गले से लगा हर्ष के आँसू बहाये।
35. When they saw Dhanya merchant coming, many of his friends, other merchants, etc. greeted him with respect and enthusiasm. They stood up and asked about his welfare.
Dhanya merchant then reached home. In the courtyard slaves, servants, and other workers touched his feet and asked his wellbeing.
In the living area his parents, brothers, sisters and other family members got up from their seats, embraced him and shed tears of joy. भद्रा के कोप का उपशमन
सूत्र ३६. तए णं से धण्णे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही धण्णं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता णो आढाइ, नो परियाणाइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परम्मुही संचिट्ठइ।। ___तए णं से धण्णे सत्थवाहे भई भारियं एवं वयासी-“किं णं तुब्भं देवाणुप्पिए, न तुट्ठी वा, न हरिसे वा, नाणंदे वा ? जं मए सए णं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं || विमोइए।"
सूत्र ३६. अन्त में धन्य सार्थवाह अपनी पत्नी भद्रा के पास गया। उसे आता देख भद्रा ने अभिवादन ही नहीं किया मानो अपरिचित हो। वह मौन रही और मुँह घुमाकर बैठ गई। यह देख धन्य सार्थवाह बोला-“देवानुप्रिये ! मेरे आने से तुम्हें न संतोष हुआ, न हर्ष और न आनन्द। क्या बात है ? मैं तो अर्थदण्ड देकर राज कोप से छूटकर आया हूँ।"
APPEASEMENT OF BHADRA
36. In the end Dhanya merchant went to his wife. Seeing him approach, Bhadra gave a cold shoulder as if she did not recognize him.. She remained silent and turned away from him. Surprised, Dhanya
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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